प्रेक्षाध्यान और क्षमा के साधन से करें गुस्से पर नियंत्रण: आचार्यश्री महाश्रमण
सूरत शहर में पूज्यप्रवर का नागरिक अभिनंदन समारोह
भगवान महावीर युनिवर्सिटी, सूरत, 24 अप्रैल, 2023
आचार्य महाश्रमण नागरिक अभिनंदन समिति, सूरत द्वारा तेरापंथ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी का नागरिक अभिनंदन समारोह का आयोजन किया। सूरत म्युनिसिपल कार्पोरेशन मेयर से लेकर अनेक संस्थाओं के गणमान्य व्यक्तित्व पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ पहुँचे। महामनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में हार और जीत की स्थितियाँ भी बनती हैं। बाहर की दुनिया में कोई जीत जाता है, हार जाता है तो अध्यात्म के क्षेत्र में भी जीत की बात आई है कि एक योद्धा दस लाख दुर्जेय शत्रुओं को जीत लेता है, वह शूरवीर आदमी है। दूसरा साधक आदमी जो केवल अपनी आत्मा को जीत लेता है। दोनों में बड़ा विजयी कौन?
शास्त्र में कहा गया कि जो एक अपनी आत्मा को जीत ले वह उसकी परम जय हो जाती है। शत्रुओं को जीतने वाले की तो जय होती है। आत्मा अमूर्त है, शरीर हमें स्थूल रूप में दिखाई दे रहा है। अध्यात्म की सिद्धांत प्रणाली में आत्मा अलग, शरीर अलग। यह निश्चय है। शरीर अस्थायी है, आत्मा स्थायी होती है। शरीर एक दिन विनाश को प्राप्त हो जाता है, आत्मा तो अविनाशी है। प्रश्न है कि आत्मा को जीतने की बात बताई है, पर आत्मा को कैसे जीता जाए। आत्मा का जो स्वरूप है, उसको जिन तत्त्वों ने विकृत बना दिया है, आवृत्त कर दिया है, उन तत्त्वों को दूर करना आत्मा को जीतना होता है। विकृति के कारण आदमी गुस्सा, छलना, लोभ, अहंकार, राग-द्वेष में चला जाता है। आत्मा की प्रकृति शुद्धता है और विकृति अशुद्धता है। अशुद्धता को दूर करने पर शुद्धता नजर आने लगती है।
भौतिक संसाधन आदमी को सुविधा दे सकते हैं। भीतरी सुख साधना से निर्जरा से मिल सकता है। सुविधा के लिए संसाधन होते हैं। साधु तो साधनाशील होते हैं। अध्यात्म की साधना अपने आपको जीतने का तरीका है। गुस्से को दूर करने के लिए उपशम क्षमा की साधना करें। प्रेक्षाध्यान की साधना करें। मोन की साधना करें। यह एक प्रसंग से समझाया कि गुस्सा आए तो मुँह में मिश्री की डली ले लें। स्वयं का गुस्सा शांत करें और दूसरों का भी गुस्सा शांत करने का प्रयास करें। हमारी अणुव्रत यात्रा चल रही है। हम सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की बातें भी जनता को बताते रहते हैं। समणी चैतन्यप्रज्ञा जी, समणी हिमप्रज्ञा जी अमेरिका से आई हैं। जैनिज्म, प्रेक्षाध्यान प्रचार-प्रसार का काम होता रहे। जनता में, विद्वानों में अच्छा काम हो।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि दो तरह की तस्वीर होती हैं। एक साधना और दूसरी जीवन तपस्वीर। साधारण में आकृति का मूल्य है, तो जीवन में प्रकृति का मूल्य है। आकृति अस्थायी है, प्रकृति का मूल्य स्थायी है। प्रवृत्ति के मूल्यों को बढ़ाने के लिए हम हमारे जीवन में मैत्री भावना व प्रमोद भावना के गुणों का विकास करें। समणी चैतन्यप्रज्ञा जी ने अमेरिका स्थित फ्लोरिडा इंटरनेशनल युनिवर्सिटी में चल रहे जैन विद्या एवं प्रेक्षाध्यान के कार्यक्रमों की जानकारी श्रीचरणों में प्रस्तुत की। मुमुक्षु ऋजुला ने संस्कृत भाषा में अपनी भावना अभिव्यक्त की।
नागरिक अभिनंदन समारोह में तेरापंथ समाज द्वारा सामूहिक अभिवंदना गीत की प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में आचार्य महाश्रमण अभिनंदना समिति से भरतभाई, गोविंद भाई ढोलकिया, म्युनिसिपल मेयर हेमाली बेन बोधावाला, सौराष्ट्र समाज से कानजीभाई, म्यू-स्टेंडिंग कमिटी चेयरमैन परेशभाई पटेल, गणपतराज चौधरी, पद्मश्री मथुरभाई सवाणी, पद्मश्री यतिनभाई करजीया, ओपेरा ग्रुप से शंकर भाई, प्रमोद भाई चौधरी, पद्मश्री कनुभाई टेलर, जीतू भाई शाह (जैनम ग्रुप से), इस्कान से राधाशरण ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर को अर्पित अभिनंदन पत्र का वाचन संजय भाई जैन ने किया। सभी आगंतुक महानुभावों ने पूज्यप्रवर को अभिनंदन पत्र उपहृत कर धन्यता का अनुभवन किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। अभिनंदन समारोह का संचालन अनुराग कोठारी एवं विश्वेश संघवी ने किया।