हमारा धर्मसंघ धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति करता रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

हमारा धर्मसंघ धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति करता रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

पदाभिषेक समारोह में साधु-साध्वियों, समणियों व श्रावक समाज ने की आराध्य की अभिवंदना

मुनि उदित कुमार जी एवं मुनि दिनेश कुमार जी को बहुश्रुत परिषद के सदस्य के रूप में किया मनोनीत

उधना, सूरत, 30 अप्रैल, 2023
वैशाख शुक्ला दशमी-भगवान महावीर के केवलज्ञान कल्याणक दिवस के दिन ही सरदारशहर के गांधी विद्या मंदिर में तेरापंथ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी पट्टासीन हुए थे। पूरे धर्मसंघ की ओर से मुनि सुमेरमल जी ‘सुदर्शन’ ने आपश्री को अमल धवल चद्दर ओढ़ाई थी। आज यहाँ परम पावन का चौदहवाँ पदाभिषेक दिवस पूरा धर्मसंघ मना रहा है। आचार्य महाप्रज्ञजी के अनंतर पट्टधर, तेरापंथ के सरताज आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल अमृत देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आज वैशाख शुक्ला दशमी और परम वंदनीय श्रमण भगवान महावीर का कैवल्य कल्याणक दिवस है। केवल ज्ञान केवल दर्शन प्राप्ति का दिन है। भगवान महावीर ने युवावस्था में श्रमण्य को स्वीकार कर लगभग साढ़े बारह वर्षों तक विशेष साधना-तप किया और आज के दिन उन्होंने अपना एक लक्ष्य प्राप्त कर लिया।
यह दिन ज्ञान प्राप्ति दिवस जैसा है। आज का दिन तेरापंथ धर्मसंघ के साथ भी जुड़ गया। आचार्य भिक्षु ने एक ऐसा संगठन खड़ा कर दिया जो आगे विकास करता गया। आचार्य भिक्षु की उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा चली। पूज्य कालूगणी ने मुनि तुलसी को 22 वर्ष की युवा अवस्था में अपना दायित्व सौंप दिया। आचार्य तुलसी ने महाप्रज्ञ जी को अपना उत्तराधिकार सौंपा और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने अपना दायित्व मुझे सौंपने की कृपा की। गुरुदेव तुलसी ने मुझे ज्ञान दिया और आगे विकास करने की प्रेरणा दी। महाश्रमण का पद प्रदान करवाया। संघीय प्रशासन के कार्यों में मुझे आगे बढ़ाया। भविष्य का इंगित दिया था। एक बार कहा था कि मैं ऊपर जा करके देखूँगा। मुझे युवाचार्य महाप्रज्ञ जी से भी जोड़ दिया। आचार्य महाप्रज्ञ जी का जब महाप्रयाण हो गया तो आज के दिन मुझे औपचारिक रूप में पट्टोत्सव के रूप में अमल चद्दर ओढ़ाकर दायित्व की रस्म अदा की गई।
हमारा धर्मसंघ एक आचार्य केंद्रित धर्मसंघ है। वर्तमान आचार्य द्वारा ही भावी आचार्य का निर्णय होता है। मुनि सुमेरमल जी स्वामी ने मुझको शिक्षा-दीक्षा और संस्कार दिए थे। मुझ पर अनेक चारित्रात्माओं का उपकार रहा है। साध्वीप्रमुखाश्रीजी सहयोगी के रूप में होते हैं। वर्तमान में साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी का सहयोग प्राप्त हो रहा है। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी एवं मुख्य मुनि महावीर कुमार जी का सहयोग भी प्राप्त हो रहा है। संघ दायित्व की अमल चद्दर ओढ़े आज तेरह वर्ष पूरे हो रहे हैं। मैं इसकी लाज बनाए रखूँ ऐसी मेरी शक्ति बनी रहे। ये अमल धवल चद्दर निर्मल रहे, इसमें दाग न लग सके, इसके लिए मंगलकामना करता हूँ। इतना बड़ा धर्मसंघ मिला है। इस संघ के साथ गहराई से जुड़ने का अवसर प्राप्त हुआ है, यह भी भाग्य की बात है।
बहुश्रुत परिषद् का गठन भी मैंने किया था, उसमें सात सदस्य होते हैं, पर वर्तमान में इसके पाँच सदस्य ही हैं। मैं और दो मुनियों को बहुश्रुत परिषद् का सदस्य मनोनीत कर रहा हूँµमुनि उदित कुमार जी स्वामी और मुनि दिनेश कुमार जी। बहुश्रुत परिषद् का भी एक दायित्व है। ज्ञान और स्वयं का विकास होता रहे। हमारे आचार की भी अप्रमत्तता- जागरूकता बनी रहे। नई बात जोड़ सकते हैं, पुरानी बात छोड़ सकते हैं और पकड़े हुए भी रख सकते हैं। समीक्षा दृष्टि से कार्य होना चाहिए। आचार्य भिक्षु और उनकी उत्तरवर्ती आचार्य परंपरा के प्रति श्रद्धाप्रणत हूँ। हमारे धर्मसंघ की परंपरा अविच्छन्न रूप में लंबे काल तक चले।
पूज्यप्रवर ने अपने पट्टोत्सव पर सभी चारित्रात्माओं को तीन माह तक औषधि आदि के विगय की बख्शीष करवाई, तो आवस्सयं आगम के स्वाध्याय करने की प्रेरणा भी दी।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि परमपूज्य आचार्यप्रवर का आज पट्टोत्सव है। चारों ओर उत्साह का दृश्य दिखाई दे रहा है। आप हमें शिक्षा फरमाते हैं कि हमें गुप्ति का प्रयास करना चाहिए। विश्व पटल पर आप अनेक व्यक्तित्वों में शोभा रहे हैं। आपका कृतत्व ही आपके व्यक्तित्व का प्रतिबिंब है। गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने आपके व्यक्तित्व का मूल्यांकन किया और दायित्व की चादर ओढ़ाते रहें। दायित्व की डोर एवं संघ का संचालन वही कर सकता है, जिसमें सेवा की भावना हो। आचार्यप्रवर हमेशा सेवा की भावना के प्रति जागरूक रहते हैं। संघ की बागडोर वह व्यक्ति संभाल सकता है, जो संघ की रीति-नीति, परंपराओं और मर्यादाओं को जानता हो। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने आपके नेतृत्व करने की क्षमता के आधार पर ही आपके कोमल कंधों पर संघ का भार सौंपा था।
मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने कहा कि आज का दिन जैन शासन व तेरापंथ धर्मसंघ के लिए विशिष्ट गौरव का दिन है। आज ही के दिन भगवान महावीर को कैवल्य प्राप्त हुआ था तो आज ही के दिन आचार्यश्री महाश्रमण जी तेरापंथ धर्मसंघ में पट्टासीन हुए थे। गुरु वह होता है, जो नितांत गुरुता संपन्न होता है। आपश्री आचार्य के 36 गुणों की गुरुता से संपन्न हैं। आपश्री के सान्निध्य में तेरापंथ धर्मसंघ नित नई ऊँचाइयों को छू रहा है। हमें आपका नेतृत्व युगों-युगों तक प्राप्त होता रहे, यही मंगलकामना करता हूँ।
बहुश्रुत परिषद् के सदस्य मनोनीत होने पर मुनि उदित कुमार जी एवं मुनि दिनेश कुमार जी ने पूज्यप्रवर के प्रति कृतज्ञता के स्वर में अपनी भावना अभिव्यक्त की एवं स्वयं का और विकास होता रहे ऐसी गुरुवर से आशीर्वाद प्रदान करने की प्रार्थना की। पट्टोत्सव के पावन दिन पर प्रातः सूर्योदय से पूर्व मुख्य मुनिश्री ने एवं साधुवृंद ने अपनी मंगलभावना रूपी बधाई गीत से अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में मुनिवृंदों ने संस्कृत के श्लोकों से वर्धापन किया। मुनि निकुंज कुमार जी, मुनि मार्दव कुमार जी, साध्वी वीरप्रभा जी, साध्वी लब्धिश्री जी, साध्वी रतिप्रभा जी, साध्वी ऋद्धिप्रभा जी, साध्वी समताप्रभा जी, साध्वी दीक्षाप्रभा जी, साध्वी पावनप्रभा जी आदि साध्वियाँ, साध्वी भव्ययशाजी, साध्वी नवीनप्रभा जी, साध्वी मृदुप्रभा जी, साध्वी जिज्ञासाप्रभा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वीवृंद ने समूह गीत प्रस्तुत किया। बर्हिविहारी साध्वियों ने भी गीत प्रस्तुत किया। समणी सत्यप्रज्ञा जी, समणी रोहितप्रज्ञा जी एवं मुमुक्षु बहनों ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला की प्रस्तुति हुई। उधना समाज द्वारा धर्मचक्र का लोकार्पण हुआ। स्व0 उपासक ओमप्रकाश जैन-कोटकपुरा की स्मृति में प्रकाशित पुस्तक ‘ओम-संपदा’ पूज्यप्रवर को उनके परिवार वालों ने उपहृत की।
संघगान से कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना में स्व0 उपासक ओमप्रकाश जैन की पुत्री डॉ0 शैली जैन, धर्मरुचिजी मुनिश्री की संसारपक्षीय पौत्री, आस्था एवं उधना उपासक श्रेणी ने भी अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की।