आध्यात्मिकता के पोषण में हो भौतिकता का उपयोग: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आध्यात्मिकता के पोषण में हो भौतिकता का उपयोग: आचार्यश्री महाश्रमण

महावीर समवसरण, वेसु-सूरत, 28 अप्रैल, 2023
ससीम को असीम बनाने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी की पावन सन्निधि में पंचदिवसीय संस्कार निर्माण शिविर का समापन एवं गुजरात ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों द्वारा ग्रांड ज्ञानशाला कार्निवल का समायोजन हुआ, जिसमें गुजरात में लगभग 1008 ज्ञानार्थियों की सहभागिता रही। शक्ति और शांति के पुरोधा आचार्यप्रवर ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि प्राणी के भीतर अनेक वृत्तियाँ होती हैं। सद्वृत्तियाँ होती हैं, तो दुर्वृत्तियाँ भी होती हैं। वीतराग में भी उपशांत मोह कषाय विद्यमान रहता है। ज्ञानावरणीय और मोहनीय कर्म कुछ क्षयोपशम सामान्य जीव मिलेगा ही मिलेगा। इस कारण सद्प्रवृत्ति हर प्राणी में प्राप्त होती है।
दुष्वृत्तियों में एक कषाय है-लोभ। यह सब दुष्वृत्तियों में सबसे बाद में जाने वाली वृत्ति है। दसवें गुणस्थान तक सूक्ष्म संपराय लोभ विद्यमान रहता है। लोभ को पाप का बाप कहा गया है। लोभ पर नियंत्रण संतोष से किया जाए। प्रतिपक्ष का अभ्यास करने से पक्ष हल्का कम हो सकता है। क्षमा से क्रोध पर, मार्दव से अहंकार पर, ऋजुता से माया पर नियंत्रण किया जा सकता है। लोभ की चेतना तो हर संसारी प्राणी में रही है। वर्तमान में सोशल मीडिया भी एक साधन हो गया। यह आदमी की आकांक्षाओं का निमित्त बन सकता है। इसके अपने सुपरिणाम हैं तो दुष्परिणाम भी हैं। सोशल मीडिया के सुपरिणाम का लाभ उठाएँ। साधु समाज की साधना में ये सोशल मीडिया बाधक न बन जाए। इसलिए उसे अपना विवेक रखना चाहिए।
गृहस्थों के लिए भी सोशल मीडिया संयम-अहिंसा में बाधक न बने। लाभ के निमित्त से लोभ बढ़ सकता है। इच्छाओं का परिसीमन करें। पदार्थ के भोगों की सीमा हो। परिग्रह की भी सीमा हो, ऐसी संयम की साधना की जाए। असंयम से कई बार शक्ति का गोपन हो सकता है। शक्ति का संवर्धन हो, जो शक्ति है, उसकी सुरक्षा रखो, शक्ति का दुरुपयोग न हो, सदुपयोग हो। इससे शक्ति का विकास हो सकता है। दुनिया में बहुत चीजें हैं, इनके होने पर भी संयम हो। आध्यात्मिकता के बिना आंतरिक शांति बड़ी कठिन है। भौतिकता का उपयोग करने में विवेक और संयम जरूरी है। भौतिकता भी आध्यात्मिकता को पुष्ट करने वाली हो। भौतिकता का उपयोग आध्यात्मिकता के पोषण में हो।
आज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थी आए हैं। ज्ञानशाला दिवस पर भी इतनी परिषद् नहीं होती होंगी। भौतिकता की चकाचौंध में इतने बच्चों का उपस्थित होना भी विशेष बात है। इस बात के पीछे परिश्रम लगता है। भौतिकता के सामने आध्यात्मिकता को खड़ा करना एक बड़ी बात है। स्कूल की पढ़ाई के साथ धर्म की पढ़ाई करना बहुत बड़ी बात है। तेरापंथी महासभा का यह एक अच्छा उपक्रम है। संस्कार निर्माण शिविर भी लगा है। ये भी समाज के धर्म से जुड़े हुए अच्छे उपक्रम हैं। प्रशिक्षिकाएँ भी अच्छा कार्य कर रही हैं। एक स्कूल-सा माहौल हो गया है। ज्ञानशाला समय के साथ-साथ अच्छा विकास करती रहें। आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि उदित कुमार जी स्वामी अपने चिंतन से इसमें और विकास कराते रहें। ज्ञानशालाओं का भी संख्या व शक्ति संवर्धन हो। ज्ञानार्थियों की भी संख्या बढ़े।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि वर्तमान में सोशल मीडिया से लोगों का संपर्क और ज्ञान बढ़ रहा है, पर इसका उपयोग एक सीमा तक ही हो। इसके दुरुपयोग से व्यक्ति इमोशनली प्रभावित हो रहा है, बच्चे डिप्रेशन में जा रहे हैं। पारिवारिक संबंध टूट रहे हैं। कई तरह की बीमारियाँ होने से आदमी का आत्म-विश्वास कम होता जा रहा है। बच्चे गुस्सैल बन रहे हैं। ईगो बढ़ रहा है। इसलिए इसके दुरुपयोग से बचें।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि दुनिया में शक्ति का बड़ा महत्त्व है। शक्ति के बिना न ज्ञान हो सकता है, न साधना हो सकती है और न ही कष्ट सहने की क्षमता रहती है। शक्ति जागरण व संवर्धन के आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने पाँच उपाय बताए हैं-दीर्घ श्वास प्रेक्षा, क्रोध पर नियंत्रण, वाणी संयम, आहार संयम व कायोत्सर्ग। आचार्यप्रवर अनंत शक्ति जागरण का प्रयास कर रहे हैं। ज्ञानशाला के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि उदित कुमार जी ने समझाया कि जो मेरे लिए श्रेयस्कर है, उसका मैं अनुसरण करूँ।
ग्रांड ज्ञानशाला कार्निवल के प्रारंभ में ज्ञानार्थियों द्वारा मंगलाचरण किया गया। महासभा के अध्यक्ष मनसुख सेठिया ने ज्ञानशाला व संस्कार निर्माण शिविर के बारे में जानकारी दी। ज्ञानशाला के राष्ट्रीय संयोजक सोहनराज चोपड़ा एवं आंचलिक संयोजक प्रवीण मेड़तवाल ने अपनी-अपनी भावना अभिव्यक्त की। महासभा अध्यक्ष व ज्ञानशाला परिवार ने शिशु संस्कार बोध-भाग-3 का नवीन संस्करण पूज्यप्रवर को उपहृत किया।
ज्ञानार्थियों की प्रस्तुति में गुरु वंदना, ज्ञानशाला गीत, आसन, महाप्राण ध्वनि, ध्यान, संस्कार सप्तक, 25 बोल के कुछ बोल एक्शन के साथ, महाश्रमण अष्टकम् का एक पद, वंदना सूत्र, ‘श्रेष्ठ बालक कौन’ गीत की कव्वाली, पाँच संकल्प, त्रिपदी वंदना एवं उद्घोष का सुंदर एकरूपता के साथ प्रस्तुति हुई। ज्ञानार्थियों ने संकल्पों का गुलदस्ता पूज्यप्रवर को समर्पित किया और पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया।
संस्कार निर्माण शिविर में श्रेष्ठ बालक-बालिका एवं अनुशासित बालक-बालिका के चयन का नामोल्लेख किया गया। तेयुप भजन मंडली ने गीत की प्रस्तुति दी। लिंबायत विधायिका गीता बेन पाटिल एवं आईपीएस सागर बाफना ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति द्वारा दोनों का प्रतीक चिÐ से सम्मान किया गया।
संस्कार निर्माण शिविर के समापन में आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि जीतेंद्र कुमार जी ने शिविर संबंधी जानकारी दी। शिविरार्थियों ने तत्त्वज्ञान गीत की प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। शिविरार्थी जो श्रेष्ठ व अनुशासित थे, उनको सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।