दीक्षा कल्याणक महोत्सव पर
भाग्य सराएँ गौरव गाएँ युग प्रधान गणिराज,
गुरु महाश्रमण मिले हैं, सुरभित सुमन खिले हैं,
सुरभित सुमन खिले हैं घी के दीप जले हैं।
दीक्षा कल्याणक महोत्सव हर्ष मनाएँ,
आस्था का अस्तित्व मंगल तिलक लगाएँ,
भावों से करते हैं अर्चन खुशियाँ वे अंदाज।।1।।
नेमानंदन को पाकर संघ खुशहाल है,
अनुत्तर संयम समता तेजस्वी भाल है,
दशों दिशाएँ तुम्हें बधाएँ करती हैं ओगाज।।2।।
जीवन निर्माता प्रभुवर भाग्यविधाता,
धन्य बन जाता जो भी चरणों में आता,
तेरी चरण शरण में आकर हर्षित सकल समाज।।3।।
तुमने बहाई जग में करुणा की धारा,
भटके मनुज को मिला सिंधु किनारा,
मानवता के महामसीहा है दुनिया को नाज।।4।।
वीतराग मोहक मुद्रा लगती मनहारी,
श्रुतधर शक्तिधर शांतिधर धारी,
युग-युग जीओ रहो निरामय शासन के सरताज।।5।।
लय: हमें यह पंथ मला है---