दुनिया में संघ अनेकों है
दुनिया में श्रमण अनेकों है, गुरु महाश्रमण का क्या कहना।
दुनिया में तपस्वी अनेकों है, महातपस्वी गुरु का क्या कहना।।
तव लक्ष्य है आत्म साधना, बस पावन हो आराधना।
पच्चास वर्ष संयम जीवन, गोल्डन जुबली का क्या कहना।।
ना राग की लहरे चलती है, ना द्वेष तरंगे आती है।
पल-पल आत्मा में रमण करे, वीतराग तुल्य का क्या कहना।।
गुरु पाप ताप संताप हरे, हम महाश्रमण का ध्यान धरे।
ऊँ ह्ीं श्रीं महाश्रमण गुरुवे, इस गुरुमंत्र का क्या कहना।।
तेरे बोल बड़े अनमोल है, आचार पक्ष बेजोड़ है।
कोई पोल नहीं अनुशासन में, इस अनुशास्ता का क्या कहना।।
गुरु महाश्रमण महा काम करे, भिक्षु शासन का नाम करे।
नस-नस में बसे भिक्षुवाणी, महामना भिक्षु का क्या कहना।।
गुरु तुलसी की परछाई है, महाप्रज्ञ से करूणा पाई है।
हर जन-मन विपुल करे वंदन, नेमानंदन का क्या कहना।।