कनक-आभा विश्रुतविभा

कनक-आभा विश्रुतविभा

हमारे इस विश्व में अनेक महत्त्वपूर्ण धातुएँ हैं, उनमें संभवतः सबसे अधिक, आकर्षक एवं उपयोग सोने (स्वर्ण) का होता है। मूल्य की दृष्टि से महँगा होने पर भी प्रायः लोगों के मन में उसके प्रति आकर्षण रहता है। खादान से निकली स्वर्ण धातु ताप आदि कितनी प्रक्रिया से गुजरने के बाद अपने आपमें अनेक स्वरूप को प्राप्त होता है। स्वर्ण धातु अपने आप में अनेक विशेषताओं को स्वयं समाविष्ट किए हुए है। कौटिल्य अर्थशास्त्र में आचार्य कौटिल्य ने सोने में अनेक गुण बताए हैं, उन्होंने लिखा हैµ(1) एक सा रंग होना, (2) बीच में गाँठ न होना, (3) टिकाऊ होना, (4) कांतिमान, (5) मन और आँखों को अच्छा लगने वाला, (6) एक जैसी बनावट, (7) औषधीय गुणों से युक्त। जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को स्वर्ण की भाँति कब, छेद, ताप, ताड़न की प्रक्रिया से गुजारा हो वह व्यक्ति भी सोने के इन गुणों से युक्त होता है। हम वर्तमान साध्वीप्रमुखाश्री के जीवन-पोथी को पढ़ने का प्रयत्न करते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि उसका हर पृष्ठ स्वर्णमयी आभा से आलोकित है। हो भी क्यों नहीं? साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी में गुरुदृष्टि, साधना, पुरुषार्थ और परिस्थिति-रूपी कब, छेद, ताप और ताड़न से अपने जीवन को सँवारा है, निखारा है। सोने के गुण हमें साध्वीप्रमुखाश्री जी में और अधिक परिष्कृत रूप में परिलक्षित होते हैं। तुलनात्मक दृष्टि से इस पर विस्तार से व्याख्या का अवकाश है। मेरी सामान्य लेखनी तो संक्षेप-मार्ग का अवलंबन लेकर ही गतिमान हो रही है।
स्वर्ण का एक गुण हैµएक-सा रंग होना। साध्वीप्रमुखाश्री जी की प्रत्येक गतिविधि एकमात्र साधना के शुक्ल रंग से रंगी हुई है। प्रायः 3ः30 बजे ब्रह्ममुहूर्त में जागरण से लेकर रात्रि में 10-11 बजे शयन तक की कालावधि में न जाने कितने-कितने कार्य वे संपादित करते हैं। उस कार्य संपादन की पृष्ठभूमि में सहज साधना का दृढ़ आधार है। चाहे जन सेवा हो या जन उद्बोधन, विहार हो या विश्राम, मौन हो या संभाषण, स्वाध्याय हो या ध्यान, पत्र लेखन हो या पत्र-पठन, प्रेरणा प्रदान कर रही हो या प्रोत्साहन का संवर्धन, निश्चय में लीनता हो या व्यवहार में तल्लीनता आदि प्रकृतियाँ एकमात्र साधना के सहज, शांत और सुरम्य राजपथ से गुजरती हैं।
स्वर्ण का दूसरा गुण है बीच में गाँठ न होनाµजहाँ सारल्य का वास होता है वहाँ ग्रंथि कैसी? साध्वीप्रमुखाश्री जी के जीवन में कोई गाँठ नहीं है। उनका जीवन ‘सोही उज्जुयभूयस्स’ इस आगम सूक्त का यथार्थ निदर्शन है। उनके साथ किसी ने प्रतिकूल व्यवहार किया हो या अविनय संवलित शब्दों का प्रयोग, किसी ने समय पर काम किया हो या नहीं, किसी के भी प्रति उन्होंने मन में कोई गाँठ नहीं होती। वे स्वयं ग्रंथिमुक्त हैं तथा अपने सान्निध्य में आने वाले अनेक दिलों की गाँठों को खोलते हैं, खोलने में तत्पर हैं। जहाँ उलझने होती हैं, जटिलताएँ होती हैं, वहाँ गाँठ पड़ती है। साध्वीप्रमुखाश्री जी का जीवन इतना सुलझा हुआ कि उसमें किसी भी प्रकार की कोई जटिलता नहीं है। इसलिए वहाँ कोई गाँठ नहीं है।
टिकाऊ होना सोने का गुण है, वह बहुत लंबे समय तक टिका रहता है, जल्दी से सड़न, गलन आदि अवस्थाओं को प्राप्त नहीं होता। साध्वीप्रमुखाश्री जी आज्ञा, मर्यादा में पूर्णतोभावेन स्थैर्य का धारण किए हुए है। इस विषय में उन्हें कोई विकल्प मान्य नहीं है। गुरोर्दृष्टिः व्यविचारणीया अलंघनीया गुरोराज्ञा आदि वाक्य उनके केवल आदर्श नहीं हैं, अपितु जीवनगत है। जिनकी दृष्टि आत्मसाधना, गुरुदृष्टि की आराधना और साधना पर टिकी हुई है।
मन और आँखों को अच्छा लगता है। स्वर्ण कांतिमान होता है। इसकी कांति लोगों के मन को अपनी ओर खींच लेती है। साध्वीप्रमुखाश्री जी का जीवन भी आकर्षण का एक अनुपम केंद्र है। उनकी शुभ सन्निधि में जो भी आता है वह चाहे परिचित हो या अपरिचित, पहली बार भाया हो वह अनेक बार उनकी सहज, सौम्य मुद्रा सबके आकर्षण का विषय है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी भी फरमाया करतेµजो तेजोलेश्या में जीता है उसके प्रति सबका आकर्षण बढ़ जाता है। साध्वीप्रमुखाश्री संभवतः तेजोलेश्या में जीती है। यही कारण है कि आबाल वृद्ध के मन में आँखों को प्रिय लगती है।
औषधीय गुणों से युक्त सोने के अनेक गुणों में यह एक महत्त्वपूर्ण गुण है। निशीथ भाष्य आदि ग्रंथों में यह वर्णन मिलता है कि जिस पानी में सोना डालकर रखा जाता है। उसमें औषधीय गुणों का समावेश हो जाता है। बिच्छू काटने के स्थान पर उस पानी को लगाने से जहर उतर जाता है। सोने से स्वर्णभस्म आदि अनेक औषधियों का निर्माण होता है। जो शरीर की कमजोरी दूर कर पौष्टिकता प्रदान करती हैं। आपश्री की सन्निधि सबके लिए एक दवा का काम करती है। प्रतिदिन न जाने कितने लोगों के अंतर्मन की पीड़ा को दूर कर अपनत्व के अमृत प्रदान कर नव संजीवन प्रदान करती है। सारणा-वारणा के स्वर्णभस्म से साध्वी समुदाय को पोषण प्रदान कराते हैं।
अष्टम् साध्वी प्रमुखाश्री शासनमाता का अभिधान भी कनकप्रभा है। श्रद्धेय शासनमाता के गुण सुमनों में भी आपका जीवन सुरभित है, सुशोभित है। इस प्रकार कनकप्रभा से अभिमंडित साध्वीप्रमुखाश्री जी के प्रति मंगलकामना करते हैं कि उनकी वह कनकाभा शत सहसुगुणित होती हुई संपूर्ण धर्मसंघ में संक्रांत हो चिरायुष्यता को प्राप्त कर चिरकाल तक हमारी साधना का पथ प्रशस्त करती रहे।