वर्षीतप का सौभाग्य महापुण्याई से मिलता है

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वर्षीतप का सौभाग्य महापुण्याई से मिलता है

नाथद्वारा
तेरापंथ भवन में डॉ0 साध्वी परमयशा जी के सान्निध्य में अक्षय तृतीया एवं साध्वी कुमुदप्रभा जी के वर्षीतप के पारणा का कार्यक्रम आयोजित हुआ। डॉ0 साध्वी परमयशा जी ने कहा कि भगवान ऋषभ जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे। उन्होंने जैन धर्म का इस अवसर्पिणी काल में प्रवर्तन किया। वे आदिकर्ता थे। सबसे पहले विवाह की प्रथा भगवान ऋषभ से शुरू हुई। ऋषभ के 100 पुत्र 2 पुत्रियाँ यानी 102 बच्चों का जन्म हुआ। वे सबसे पहले राजा बने, पहले मुनि, पहले भिक्षाचर, पहले जिन, पहले केवली और पहले तीर्थंकर बने। प्रभु ऋषभ का आयुष्य 84 लाख योनी पूर्व था। 1000 वर्ष तक साधना की। एक वर्ष तक यानी 400 दिन तक भगवान को आहार नहीं मिला, क्योंकि भगवान की वाणी से बैलों के मुँह पर छींकी 12 घड़ी रही। 12 घड़ी की अंतराय से प्रभु को 12 माह तक सुपात्र दान का योग नहीं मिला। श्रेयांस प्रपोत्र के हाथों इक्षुरस से भगवान का पारणा हुआ। अहोदानं की ध्वनि पंच दिव्यों की वर्षा के साथ भगवान का पारणा हुआ। इक्षुरस से पारणा होने से तीज का दिन आखा तीज बन गया।
आपने कहा कि हजारों लोग वर्षीतप करते हैं। साध्वी कुमुदप्रभा जी ने वर्षीतप की पतवार थाम कमाल कर दिखाया है। बुच्चा दुगड़ कुल पर सुयश का कलश चढ़ाया है। अपनी आत्मा को चमकाया है। माता-पिता का नाम महकाया है। दिल्ली से अनिल, राजलदेसर से कमल दुगड़ परिवार सहित आए। नाथद्वारावासी प्रफुल्लित हैं, उन्हें वर्षीतप पारणा का सौभाग्य मिला है। साध्वी कुमुदप्रभा जी के ज्ञाति चारित्रात्माओं के संदेश आए हैं। मंगलकामना करते हैं कि कुमुदप्रभा जी त्याग के क्षेत्र में सतत गतिमान रहें। साध्वीवृंद द्वारा गीतों का संगान किया गया।
कार्यक्रम का मंगलाचरण साध्वी कुमुदप्रभा जी ने किया। कार्यक्रम में साध्वी कुमुदप्रभा जी के संसारपक्षीय नातीलों ने भी अपनी लाड़ली के वर्षीतप पर वक्तव्य, कविता, गीत आदि के माध्यम से तपसण को बधाई दी। तेममं, नाथद्वारा ने गीत का संगान किया और संकल्पों का गुलदस्ता भी साध्वी कुमुदप्रभा जी को भेंट किया। ज्ञानशाला के बच्चों ने सॉन्ग, लघु नाटक प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में साध्वी मुक्ताप्रभा जी ने अपने भाव व्यक्त किए। कार्यक्रम में कमलेश धाकड़ ने सबका स्वागत किया। मुख्य अतिथि निर्मल गोखरू ने कहा कि भगवान ऋषभ ने असि, मसि, कृषि का आरंभ किया और वह युग के प्रथम दृष्टा, नायक और नेता थे। वर्षीतपधारी साध्वी कुमुदप्रभा जी ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी के संदेश का वाचन साध्वी कुमुदप्रभा जी के नातीले कमल दुगड़ ने किया। कार्यक्रम का संचालन साध्वी विनम्रयशा जी ने किया। आभार ज्ञापन सभाध्यक्ष निर्मल छाजेड़ ने किया।