अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्

शुभ मनोनयन दिन आया, श्रमणी परिकर मोद मनाए,
परिकर मोद मनाए, भावों का अर्घ्य चढ़ाए रे।।

जन्मधरा चंदेरी में गुरु तुलसी कर से दीक्षा,
महाप्रज्ञ मंगल सन्निधि में पाई गहरी शिक्षा,
प्रभु के अनगिन उपकार हैं,
बरसी अमत रसधार है,
दो गुरुओं का निर्देशन जीवन शतदल विकसाए रे।।

ज्योतिचरण जय महाश्रमण पौरुष के परम पुजारी,
कीर्तिमान पर कीर्तिमान रचते हैं कीरतधारी,
वैशाख महीना साख है,
रचता नूतन इतिहास है,
चंदेरी से तृतीया साध्वीप्रमुखा खोज कर लाए रे।।

मन वचन कर्म त्रियोग साधना से सिंचित फुलवारी,
तप, जप, ज्ञान, ध्यान, स्वाध्याय बने अविरल सहचारी,
संयम से अनुबंधित चर्या,
आराधित वर माता ईर्या,
पंचाचार साधिका तेरी गौरव गाथा गाएँ रे।।

शासनमाता सी वत्सलता देखें बाहर भीतर,
सारण-वारण की शैली में रहे न कोई अंतर,
गण गणपति से ही प्रीत है,
गुरु आज्ञा ही संगीत है,
श्रद्धा सेवा और समर्पण विनय भाव दरसाए रे।।

श्रुताराधिका सतियों की लंबी कतार बन जाए,
संस्कृत भाषा के विकास की नई पौध सरसाए,
ये स्वप्न आपके वरदायी,
गुरु आशीर्वर से फलदायी,
अग्रिम चयन दिवस पर हम संस्कृत में गीत बनाएँ रे।।
युगों-युगों तक मिले शासना मंगल भाव सजाएँ रे।।

लय: स्वामीजी थारी साधना री मेरू सी---