अर्हम्

अर्हम्

मंगल उत्सव आया, खुशियाँ मनाएँ,
सतीशेखरे! तुम्हें बधाएँ।
मन की वीणा मधुरिम तान सुनाए,
चयन दिवस मनभाए।
अमृत वर्षा करवाते हैं, प्रभुवर करुणासागर।
श्रमणी गण गुलजार बना साध्वीप्रमुखा को पाकर।।

उदित हुआ अम्बर में अरुणिम ओजस्वी दिनकर,
दिव्य अलौकिक छटा बिखेरे शीतल निर्मल शशधर,
वर्धापन का पावन अवसर, मुखरित होता अक्षर अक्षर,
हार्दिक भाव समर्पित करता मन का कोना-कोना।
दीक्षा दिन पर दिखलाया गुरुवर ने दृश्य सलोना।।

आकर्षक व्यक्तित्व तुम्हारा अप्रमत्तता अविरल,
सुधापान स्वाध्याय सदा श्रमसरिता बहती कल-कल,
नई पौध में संस्कारों का करते अभिनव सिंचन,
प्रेरक प्रोत्साहन पाकर सुरभित हो संयम उपवन,
जागृत करते सोई क्षमता, अनुशासन में है वत्सलता,

करे कामना युगों-युगों तक सन्निधि तेरी पाए।
तेजस्वी संन्यास बने शिखरों को छूते जाए।।

लय: कितना प्यारा तुझे रब ने---