गृहस्थ जीवन में भी त्याग का महत्त्व: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

गृहस्थ जीवन में भी त्याग का महत्त्व: आचार्यश्री महाश्रमण

भगवान महावीर यूनिवर्सिटी, वेसु-सूरत, 27 अप्रैल, 2023
प्रातः स्मरणीय आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि त्याग अपने आपमें एक बल होता है। जो आदमी अपनी कामनाओं का परित्याग कर देता है, इच्छा-लालसाओं का परिसीमन कर लेता है, वह अध्यात्म की दृष्टि से एक आगे बढ़ा हुआ व्यक्ति हो सकता है। त्याग बाहर से ही नहीं भीतर से भी होना चाहिए।अगर भीतर से आसक्ति का तार जुड़ा रहता है तो त्याग में कमी है। साधु के तो आभ्यंतर और बाह्य त्याग दोनों होते हैं। वेष का भी महत्त्व है। वेष से पहचान होती है। मुख-वस्त्रिका बाँधने की सैकड़ों वर्षों की परंपरा है। सामायिक में गृहस्थ भी साधु जैसा बन जाता है। आगम, स्वाध्याय करते समय हमारा थूक न उछले इस कारण भी मुख-वस्तिका लगाई जाती है। मुख-वस्त्रिका से यह प्रेरणा भी मिलती है कि वाणी का संयम रखना है।
एक काल्पनिक प्रसंग द्वारा समझाया कि साधु के वेष का कितना महत्त्व है। साधु तो अहिंसा, दया, क्षमा और त्यागमूर्ति होते हैं। साधु को तो समता रखनी चाहिए। सामान्यतया बाहर का त्याग भी भीतर के त्याग को पोषण देने वाला बन सकता है। त्याग के चार अंग हो जाते हैं-(1) बाहर से त्याग है, भीतर से त्याग नहीं, (2) भीतर से त्याग है, बाहर से त्याग नहीं, (3) बाहर से भी त्याग और भीतर से भी त्याग, (4) न बाहर से त्याग और न भीतर से त्याग। संस्कार निर्माण शिविर चल रहा है। बच्चों में भी त्याग की चेतना जगे। मोबाइल में ज्यादा समय न बैठे रहें। मोबाइल का नशा न हो जाए।
गृहस्थ जीवन में भी त्याग का महत्त्व है। अनावश्यक किसी पदार्थ का उपयोग न हो। दिखावा न हो, जीवन में सादगी-संयम रहे। तो हमारी आत्मा अच्छी रह सकती है। मुनि अर्हत कुमार जी का सिंघाड़ा आज पहुँचा है। ये भी खूब अच्छा काम करते रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि बच्चों में संस्कार निर्माण की महत्त्वपूर्ण भूमिका माँ की होती है। प्रारंभ से ही माँ अच्छे संस्कार देने का प्रयास करे। माँ यदि जागरूक है, तो अपने बच्चे को अच्छा बना सकती है। अभिभावक या माता-पिता बच्चों को समय दें। उनके साथ अच्छी-अच्छी बातें करें। नैतिक-धार्मिक मूल्यों की कहानियाँ सुनाएँ तो उनमें आकर्षण पैदा होगा। बच्चे अच्छे मार्ग पर चलेंगे। संस्कार देने में गुरु की भी अहम् भूमिका होती है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि हमारा जीवन सुंदर हो और उसकी उपयोगिता हो इसके लिए हमें इंद्रिय-संयम की बाड़ लगानी चाहिए। जो सब इंद्रियों से सुसमाहित होता है, वह व्यक्ति अपनी आत्मा को सुरक्षित रख सकता है। असंयम व्यक्ति को पाप करने के लिए प्रवृत्त करता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि मोहजीत कुमारजी, मुनि अर्हत कुमार जी, मुनि जयदीपकुमार जी, सूरत की ओर से मुनि अनंत कुमार जी, मुनि निकुंज कुमार जी, साध्वी चैतन्ययशा जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की।
इस अवसर पर उपस्थित सूरत के पुलिस आयुक्त अजय तोमर ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। उपासक श्रेणी-सूरत द्वारा गीत की प्रस्तुति हुई। त्रिकमनगर ज्ञानशाला की प्रस्तुति भी हुई। ज्ञानार्थियों ने ‘प्राणी कर्म समो नहीं कोई’ गीत की प्रस्तुति दी। प्रेक्षा परिवार द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। टीपीएफ द्वारा IT Guruji बैनर का अनावरण पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में हुआ। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।