आचार्य शिवमुनि के वात्सल्य भाव ने हमें खींच लिया: आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्य महाश्रमण जी बहुत उदार आचार्य हैं: आचार्य शिवमुनि
चलथान, सूरत 7 मई, 2023
नैतिकता, नशामुक्ति और सद्भावना की अलख जगाने वाले तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता मुंबई की ओर गतिमान हैं। शनिवार को शाम की चिलचिलाती धूप में 13 किलोमीटर विहार कर पलसाना पधारे। वहाँ से 5 किलोमीटर की दूरी पर श्रमण संघ के आचार्य शिवमुनिजी के प्रवास की जानकारी प्राप्त होने पर आचार्यप्रवर और 5 किलोमीटर विहार कर अवध सांगरिला पधारे। रात्रि 8 बजे दोनों आम्नाओं के आचार्यों का आध्यात्मिक मिलन हुआ।
रविवार प्रातः अवध सांगरिला में दोनों आचार्यों की मंगल सन्निधि में कार्यक्रम आयोजित हुआ। जिसमें सैकड़ों लोगों की उपस्थिति रही। शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि भगवान महावीर से जुड़े जैन शासन में हम सभी साधनारत हैं। जैन शासन में अनेक संप्रदाय हैं। अमूर्तिपूजक, स्थानकवासी संप्रदाय से ही तेरापंथ धर्मसंघ का उदय हुआ था। हमारा स्थानकवासी संप्रदाय के आचार्यों से परस्पर सौहार्द और आध्यात्मिक मिलन होता रहा है। आचार्य शिवमुनि जी का तेरापंथ धर्मसंघ से पूरा संपर्क है। हमें इस प्रांगण में आज आना था परंतु हम कल ही आ गए। आचार्य शिवमुनि जी के वात्सल्य भाव और सौम्य मुद्रा ने हमें पहले ही यहाँ बुला लिया। कई वर्षों बाद आपसे मिलना हुआ है। सभी को धार्मिक-आध्यात्मिक प्रेरणा मिलती रहे।
आचार्य शिवमुनि जी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि आज ऐसे महान आचार्य का पदार्पण हुआ है जिन्होंने भारत, नेपाल और भूटान की लगभग 18000 किलोमीटर की यात्रा कर जन-जन को जागरूक कर जैन ध्वज को ऊँचा फहराया। आचार्यश्री महाश्रमण जी बहुत उदार हैं, यह इनकी बहुत बड़ी विशेषता है। हमने एक बार संवत्सरी एकता की बात की तो इन्होंने अपने कार्यक्रम में संवत्सरी एकता की घोषणा कर दी।
हम एक वृक्ष की दो शाखाओं के समान हैं। उन्होंने आगे फरमाया कि आपके आगमन से पहले यह बात चल रही थी कि समय कम होगा मिलने का तो मैंने कहा कि उन्हें पधारने तो दो जहाँ आंतरिक भावों का जोर होता है, स्नेह होता है, वहाँ समय की सीमा नहीं रहती है। दोनों आचार्यों ने संवत्सरी के एक ही दिन करने के विषय में चर्चा की। जैन एकता के महनीय और आकस्मिक कार्यक्रम के पश्चात् 9 बजे चलथान की ओर विहार किया। जिन शासन प्रभावक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने चलथान में पावन प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि गृहस्थ लोग अपनी आजीविका के संदर्भ में विभिन्न प्रकार के उपाय काम में लेते हैं। अर्थार्जन करने का उपाय करते हैं।
ईमानदारी एक ऐसा तत्त्व है, जो चेतना-आत्मा को निर्मल रखने में योगदायी होता है। समाज व आदमी का व्यवहार अच्छा शांतिमय रहता है। गृहस्थों को ईमानदारी को महत्त्व देना चाहिए। दुकानदारी में भी ईमानदारी रहे। दुकानदार व ग्राहक भी ईमानदार हो। ईमानदारी तो जैन-अजैन सभी का कर्तव्य-धर्म है, वो सबमें रहनी चाहिए। ईमानदारी के लिए दो चीजें हैं-झूठ नहीं बोलना और चोरी नहीं करना। सत्यमेव जयते। ईमानदारी की मंजिल बढ़िया है। आदमी में विकास की भावना हो। ईमानदारी हमारे लिए कल्याणकारी बन सकती है। आज चलथान आना हुआ है। यहाँ खूब धार्मिक चेतना अच्छी रहे।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि तत्त्व चर्चा चल रही थी कि संसार में दुर्लभ क्या है? किसी ने कहा कामधेनू दुर्लभ है, किसी ने कहा चिंतामणी रत्न दुर्लभ है। कल्पवृक्ष और देव दर्शन भी दुर्लभ है। जैन दर्शन जानने वाले ने कहा कि संसार में चार चीजें दुर्लभ हैं-मनुष्यत्व, ज्ञान, श्रद्धा और संयम में पराक्रम। संत महापुरुषों को भी दुर्लभ बताया गया है। मनुष्य जन्म को हम सफल बनाएँ। मनुष्य चिंतनशील प्राणी है, वह विकास कर सकता है। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष सुरेश पितलिया, तेरापंथ महिला मंडल, तेयुप द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। ज्ञानशाला, कन्या मंडल ने सुंदर प्रस्तुति से अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।