आचार्यश्री महाश्रमण जी के प्रति उद्गार
स्वर्ण जयंती का शुभ अवसर, कैसे आज बधाऊँ।
फूल खिले भावों के सुंदर, चरणों में आज चढ़ाऊँ।।
नेमा माँ के राज दुलारे, दुगड़ कुल के तुम उजियारे।
शासन के सरताज बने, दिखलाते नित नव्य नजारे।
अनुपम व्यक्तित्व तुम्हारा, शब्दों में बाँध न पाऊँ।।
सहज सौम्यता मधुरभाषिता, सहनशीलता भारी।
अप्रमत्तता गहरी निष्ठा, लगती है मनहारी।
तेरे गुण गौरव की गाथा, हर पल स्मृति में लाऊँ।।
अर्ध शताब्दी आज मनाएँ, पूर्ण शताब्दी भी मन भाए।
करें कामना हम मंगलमय, युगों-युगों तक सन्निधि पाएँ।
दीप जला आस्था के जगमग, श्रद्धा से शीष झुकाएँ।।