त्याग-संयम का जीवन आनंददायक

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त्याग-संयम का जीवन आनंददायक

नोखा।
मानव का जीवन अनमोल है उसे व्यर्थ व्यसनों एवं आलस्य, प्रमाद में नहीं खोना चाहिए। त्याग, संयम का जीवन ही शक्ति व आरामदायक हो सकता है। मंगलपाठ के साथ शासन गौरव साध्वी राजीमती जी ने यह उद्गार व्यक्त किए। प्रारंभ में ‘श्री नमोकार का जाप जपै’ गीतिका का संगान करते हुए सम्यक्त्व, पुण्य-पाप, जीव-अजीव पर तत्त्वज्ञान की शिक्षा साध्वी विधिप्रभा जी ने दी। साध्वी कुसुमप्रभा जी ने कहा कि ईर्ष्या, घृणा, लोभ, लालच, चोरी से दूर रहने की बात कही। करुणा, दया, सेवा भावना से ही कल्याण होगा।