साँसों का इकतारा
ु साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ु
(11)
आज का यह प्रात है अवदात कितना।
गगन की पुलकन धरा पर उतर आई॥
जानते सब तुम जगत में हो अनूठे
नहीं कोई इस तुला में आ सका है
बाँटते मधुकोष अक्षय और अनुपम
थाह बोलो कौन उसकी पा सका है
विश्व के इतिहास में अंकित हुए तुम
त्रस्त मानव के तुम्हीं हो एक त्रायी॥
घाटियाँ वीरान-सी जो लग रही थीं
आ गए सहसा वहाँ तुम ले बहारें
फूल-सी मुस्कान तुमने ही बिखेरी
जहाँ काँटों से भरे थे पंथ सारे
जिंदगी तम से घिरी जब आदमी की
चेतना आलोक की तुमने जगाई॥
दो नया संदेश तुम हमको सृजन का
स्वप्न को कर सत्य हम युग को दिखाएँ
खिल रहा सारा गुलिस्ताँ देख तुमको
प्राण का पंछी अचानक गुनगुनाए
शांति का निर्झर तुम्हारे पास बहता
बूँद बनकर मैं स्वयं उसमें समाई॥
एक लंगर और तुमने आज डाली
अब नहीं तूफान भी कुछ कर सकेगा
नाव जीवन की सहज बढ़ती रहेगी
नहीं मन-मांझी कभी भी डर सकेगा
तैर सकते हो समंदर तुम भुजा से
मचलती लहरें तुम्हें देती बधाई॥
(12)
जन-जन के मानस-मंदिर में थिरक रहा अभिनव उल्लास।
सफर सुहाना अर्द्धसदी का दिग् दिगन्त में सुयश-सुवास॥
जन-हित में अर्पित है जीवन दिखलाई अणुव्रत की राह
अलख जगाई नैतिकता की कल्पवृक्ष की ठंडी छाँह
हर इन्सां इन्सान बने यह पलती है पलकों में चाह
स्नेहिल नजरों के जादू से दूर भगाते दिल की दाह
बाँटो इमरत अंजुरियाँ भर बुझ जाए इस युग की प्यास॥
समता के उत्तुंग शिखर पर चरण तुम्हारे हैं गतिशील
ज्योतिर्मय कर देती सबको उजली ज्ञानमयी कंदील
प्रेरक सन्निधि यह मंगलमय है निदाघ में शीतल झील
सम्मोहन अद्भुत बिखेरती जीवन की अलबेली रील
चिर अनंत रमणीय! तुम्हारा उपशम-मंडित हर उच्छ्वास॥
दिल है इक दरिया करुणा का नहीं कहीं है उसका छोर
देख तुम्हारा धैर्य विलक्षण उठती मन में नई हिलोर
रजत-रश्मियों के रथ पर आ अर्चा करता रवि हर भोर
देख तुम्हारी छवि कुदरत का कण-कण पुलकित कांत किशोर
भक्ति-शक्ति की इस धरती पर रचा देव! तुमने इतिहास॥
(क्रमश:)