जीवन में संयम, सहिष्णुता व समझदारी होना जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में संयम, सहिष्णुता व समझदारी होना जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

उधना-सूरत, 2 मई, 2023
क्षमामूर्ति आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में सहिष्णुता का महत्त्व है। एक समझ शक्ति और दूसरी सहन शक्ति होती है। समझ शक्ति का महत्त्व है। ज्ञानावरणीय कर्म का अच्छा क्षयोपशम होने से आदमी की समझ शक्ति अच्छी हो सकती है। समझ शक्ति ठीक है तो कौन आदमी किस उद्देश्य से बात कर रहा है, इसको समझा जा सकता है। इस बात को आचार्य भिक्षु के समय घोड़े के पैर वाले प्रसंग से समझाया। समझ शक्ति के साथ में सहन शक्ति का भी विकास हो। सहन शक्ति न हो तो आदमी दुखी बन सकता है। अगर दोनों शक्तियाँ विकसित होती हैं, तो जीवन जीने का अच्छा आयाम प्राप्त हो सकता है।
भावनात्मक विकास भी बच्चों में हो। बच्चों को धार्मिक-आध्यात्मिक संस्कार मिले। किसी-किसी मौके पर न बोलना भी बढ़िया होता है। मौन रखना भी अच्छा है। महान वह होता है, जो विष को पीना जानता है, हर आने वाली साँस को जीना जानता है। दुनिया में बातों में माहिर कई मिल जाएँगे। लेकिन सम्मान वह पाता है, जो समर वेला में सीना तानता है। जब कलह या स्वयं की निंदा की स्थिति हो तो मौन रखें। क्षमारूपी तलवार हमारे हाथ में है, फिर दुर्जन हमारा क्या बिगाड़ सकेगा। जीवन में समता-सहनशीलता रहे। बड़ों को भी मौके पर मौन रहना चाहिए। बड़ा वह है, जिसके जीवन में बड़प्पन है, महानता है।
कई श्रावक तो साधु के माँ-बाप के समान होते हैं। कई गृहस्थ भिक्षु की अपेक्षा अधिक संयमशील भी हो सकते हैं। सहन शक्ति, समझ शक्ति और संयम शक्ति-ये तीन शक्तियाँ जीवन में होनी चाहिए। इनका जीवन में विकास हो। सहन करो सफल बनो। श्रम करो सफल बनो, संयम करो सफल बनो। संयम और गान का अमृत पीएँ। ज्ञान यथार्थ और आत्म-कल्याणकारी हो। प्राप्त ज्ञान को बाँटने का प्रयास होता रहे। ज्ञानरूपी अमृत स्वयं पीएँ और औरों को भी पिलाने का प्रयास हो। गुरुवाणी अमृतवाणी होती है, इसे जीवन में उतारने का प्रयास करें। उधना में भी खूब धर्म की जागरणा रहे। आध्यात्मिक चेतना विकसित होती रहे।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि जो व्यक्ति तीन बातों पर ध्यान देता है, वह अमृत-पान कर सकता है-(1) पक्षपात रहित दृष्टिकोण, (2) अपने स्वरूप में लीन, (3) विकल्प जाल से मुक्ति। अमृत पान का मतलब है अच्छा जीवन जीना। व्यवहार जगत में अनासक्त रहना और अनावश्यक कल्पनाओं से दूर रहना। आचार्यप्रवर अमृत पुरुष हैं। आचार्यप्रवर की अमृत वाणी से हम जीवन को अच्छा बनाते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करें। समणी ज्योतिप्रज्ञा जी, समणी स्वर्णप्रज्ञा जी, समणी प्रणवप्रज्ञाजी एवं समणी मानसप्रज्ञा जी ने अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की। सभा मंत्री सुरेश चपलोत एवं धैर्य बाफना ने भी अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला द्वारा ज्ञानशाला एक्सप्रेस, किशोर मंडल द्वारा भिक्षु ने सभा बुलाई एवं कन्या मंडल ने 14 गुणस्थान पर सुंदर प्रस्तुति दी। भजन मंडल ने भी गीत का संगान किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने अध्यात्म के दोष और गुणों के बारे में विस्तार से समझाया।