आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

बारडोली, सूरत 9 मई, 2023
तेरापंथ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी सोमवार शाम ही विहार कर बारडोली पधार गए थे। बारडोली में श्रावक समाज को मंगल देशना प्रदान करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि बत्तीस आगम हमारे यहाँ प्रमाण रूप में संबद्ध हैं, उनमें एक है-उत्तराध्ययन। उसमें छत्तीस अध्ययन हैं। इनमें तात्त्विक जानकारियाँ और कुछ घटनाएँ व कथानक प्राप्त होते हैं। इसमें अप्रमाद का संदेश, अध्यात्म साधना के प्रयोग, निर्देश प्राप्त होते हैं। उत्तराध्ययन का दसवाँ अध्ययन है, जो छोटा सा है, जिसका गुरुदेव तुलसी पश्चिम रात्रि में खड़े-खड़े स्वाध्याय करते थे। यह अध्ययन प्रमाद न करने का संदेश देने वाला है। ‘समयं गोयम मा पमायए’ ये चरण बार-बार दोहराया गया है। इस अध्ययन में अनित्यता की बात बताई गई है।
जैसे वृक्ष का पका हुआ पत्ता गिर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य का जीवन भी अनित्य है, एक दिन समाप्त हो जाता है। इसलिए मनुष्य को जागरूकता रखते हुए क्षण मात्र भी प्रमाद नहीं करना चाहिए। हमारा जीवन भी पर्याय है। जैन दर्शन में केवल नित्यता और केवल अनित्यता को ही स्वीकार नहीं किया गया है। दोनों को स्वीकार किया गया है। जैन दर्शन नित्यानित्यवादी है। दीये से लेकर आकाश तक हर पदार्थ नित्य भी है, अनित्य भी है। द्रव्य है, तो पर्याय भी है। पर्याय है, तो द्रव्य भी है। प्रधानता-गौणता हो सकती है। हम जीवन की अनित्यता को चिंतन में लाएँ। यह शरीर अनित्य है, अशुचि से पैदा होने वाला है। क्लेश-कष्ट भी इस शरीर में होते हैं। आत्मा स्थायी है, आदमी चिंतन करे कि मैं स्थायी तत्त्व के लिए क्या कर रहा हूँ। हम आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करें, यह काम्य है।
आज बारडोली आना हुआ है। बारडोली भवन में धार्मिक गतिविधियाँ चलती रहें। यहाँ साध्वीजी का चातुर्मास होने वाला है, उसका पूरा लाभ उठाएँ। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि अध्यात्म के क्षेत्र में साधना की अनेक पद्धतियाँ बताई गई हैं। भक्ति योग, राजयोग, नाद रोग और ज्ञान योग की साधना करते हैं। स्वाध्याय, ध्यान और मौन का अध्ययन करके हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। बारडोली के लोगों को पूज्यप्रवर का स्वल्प प्रवास प्राप्त हुआ है, पर वे इस अल्प प्रवास में बहुत कुछ प्राप्त कर अपना जीवन धन्य बना सकते हैं। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि आचार्यप्रवर ऐसे महापुरुष हैं, जिनके भीतर आदर्शों की गहराई, आचार की ऊँचाई है, तो सहनशक्ति भी बहुत अधिक है। श्रावक समाज को तारने, दर्शन देने के लिए कितने-कितने चक्कर लेकर पधारते हैं। जिस व्यक्ति में महानता होती है, वही ऐसा कार्य कर सकता है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष राजेंद्र बाफना, वरिष्ठ श्रावक गौतम बाफना, सुजानसिंह मेहता, अभातेयुप उपाध्यक्ष जयेश मेहता आदि ने अपनी अभिव्यक्ति दी। तेममं व तेयुप द्वारा संयुक्त गीत प्रस्तुत किया गया। किशोर मंडल, कन्या मंडल की प्रस्तुति हुई। ज्ञानशाला, अणुव्रत समिति की ओर से भावनाएँ व्यक्त की। पूज्यप्रवर ने सम्यक् दीक्षा ग्रहण करवाई एवं किशोर मंडल, ज्ञानशाला को आशीर्वचन फरमाया। कन्या मंडल ने संकल्प स्वीकार किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।