दुर्गति से बचने के लिए आदमी वीतरागता की साधना में आगे बढ़े: आचार्यश्री महाश्रमण
नवसारी, सूरत 11 मई, 2023
अध्यात्म के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि उत्तराध्ययन सूत्र जैन आगमों में एक आगम है। उसके आठवें अध्ययन, कालियं के प्रथम श्लोक में यह प्रश्न किया गया है कि यह संसार अध्रुव-अशाश्वत है और दुःख प्रचुर है। इस संसार में ऐसा कौन-सा कर्म-कार्य है, जिसको करके मैं दुर्गति में न जाऊँ। यह संसार जन्म-मरण वाला है। वर्तमान में हमारा मनुष्यों का जीवन है, जो अध्रुव है। हमारी कितनी पीढ़ियाँ आईं और आकर चली गई हैं। संसार की स्थिति है कि इसमें स्थायित्व नहीं है। जिसने जन्म लिया है, उसकी एक दिन मृत्यु भी हो जाती है। लोग कहते हैं कि धर्म करने की क्या जल्दी है, कल कर लेंगे।
तीन प्रकार के व्यक्तियों को ‘कल कर लूँगा’ कहने का अधिकार है। एक आदमी कहता है कि मेरी मौत के साथ दोस्ती हो गई। मौत आती दिखेगी तो मैं कह दूँगा कि मत आओ, तो मौत मेरी बात मान लेगी। मुझे हमेशा के लिए छोड़ देगी। दूसरा आदमी कहता है कि मैं बहुत तेज दौड़ता हूँ। मौत मुझे आती दिखेगी तो मैं तेज दौड़ जाऊँगा, मौत मुझे पकड़ ही नहीं पाएगी। तीसरा आदमी कहता है कि मैं तो कभी मरूँगा ही नहीं। पर ये सब अयथार्थ बातें हैं। कोई ऐसी बात करता है तो वह मिथ्या भाव वाला है। मृत्यु-बुढ़ापा तो आने वाले ही हैं। मृत्यु आने के अनेक रास्ते हैं। दुर्गति से बचने के लिए आदमी वीतरागता की साधना में आगे बढ़े। वीतरागता सिद्ध होने से मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है। साधु बनकर साधना करना तो बड़ी ऊँची बात है। बालावस्था में तो साधु बनना और अच्छी बात है। आत्मा निर्मल हो जाए।
गृहस्थ में रहकर भी धर्म के मार्ग पर चल सकते हैं। गृहस्थ जीवन में नैतिकता, ईमानदारी व नशा मुक्ति है, तो अच्छा है। बारह व्रत और सुमंगल साधना को ग्रहण करें। सम्यक्त्व पुष्ट रहे तो दुर्गति से बच सकते हैं। पुष्ट सम्यक्त्व आ जाए तो नरक-निगोद के ताला लग सकता है। हम जैन शासन से जुड़े लोग हैं जहाँ अहिंसा, संयम व तप समता की बात है। चार तीर्थ हैं। भगवान महावीर से जुड़ा हुआ यह भैक्षव शासन तेरापंथ जिसमें हम साधना कर रहे हैं। दुर्गति से बचने का एकमात्र उपाय हैµअध्यात्म की साधना। आज नवसारी आए हैं। यहाँ भी धार्मिक गतिविधियाँ चलती रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि व्यक्ति लक्ष्य बनाता है तो अपनी मंजिल तक पहुँच जाता है। आगे बढ़ने के लिए हम लक्ष्य बनाएँ। हमारा लक्ष्य विशेष हो। लक्ष्य ऐसा हो जिसका हम माप न कर सकें। हमें ऐसा लक्ष्य बनाना है, जहाँ तक हम पहुँच सकें। हमारा लक्ष्य वास्तविक हो।
पूज्यप्रवर के दर्शनार्थ लिंबड़ी अजरामर संप्रदाय की साध्वी तरुणलता जी आदि तीन साध्वियाँ पधारीं। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सभाध्यक्ष नवरतनमल टेबा, तेयुप अध्यक्ष जगदीश काल्या, ज्ञानशाला, मुमुक्षु मोनिका पीतलिया आदि ने अपनी-अपनी भावनाएँ व्यक्त की। तेममं एवं कन्या मंडल एवं तेरापंथ समाज द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। ज्ञानशाला द्वारा अरिष्टनेमि पर सुंदर प्रस्तुति दी गई।