साधु को घमंड नहीं करना चाहिए: आचार्यश्री महाश्रमण
गंगाधारा, सूरत 8 मई, 2023
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण ने गंगाधारा के पटेल सांस्कृतिक भवन में मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन धर्म में तपस्या की बात आती है। वैसे ही संवर और निर्जरा का भी विशेष महत्त्व है। नौ तत्त्वों में छठा तत्त्व संवर और सातवाँ निर्जरा है। संवर का तो बहुत ही महत्त्व है कि पाप कर्म का आना रुक जाए। पहले से बंधे कर्मों को तोड़ना वह काम तपस्या से हो जाता है। हमारी आत्मा एक कुंड के रूप में है। जिसमें आते हुए पानी के नाले को बंद करना संवर है और पहले से कुंड में पड़े साफ या गंदे पानी को निकालना निर्जरा है। संवर और निर्जरा से आत्मा परम शुद्धि मोक्ष को प्राप्त कर लेती है। निरोध और निस्सारण संवर और निर्जरा की साधना होती है।
आश्रव संसार का हेतु है, मोक्ष संवर का कारण है। जीवन में विविध प्रकार के तप होते हैं। जैसे सोने का शुद्ध स्वरूप अग्नि प्रकट कर देती है, वैसे ही आत्मा का शुद्ध स्वरूप तपस्या से कर्म टूट जाने से प्रकट हो जाता है। कर्मों को काटने का उपाय तपस्या है। हम जीवन में तपस्या-निर्जरा से पूर्वार्जित कर्मों के बंधन को तोड़ने का प्रयास करें। साधु बनना तो बड़ी बात हो जाती है। सहन करना बड़ी साधना है। साधु को घमंड नहीं करना चाहिए। कषायों को कमजोर करने की साधना भी बहुत बड़ी साधना है, तपस्या है। कषायमुक्ति ही मुक्ति है। श्रामण्य का सार है कि उपशम की साधना करें। प्रातः विहार के पूर्व पूज्यप्रवर ने संथारा साधिका को दर्शन दिए। श्रावकों को भी उनके निवास पर मंगलपाठ सुनाया। सायं पूज्यप्रवर ने बारडोली के लिए विहार करने की घोषणा करवाई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।