कथनी-करनी में अंतर ना हो: आचार्यश्री महाश्रमण
चीखली, गुजरात 13 मई, 2023
अमृत पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि तेरह मई का दिन है, यह दिन मेरे जन्म दिवस के साथ भी जुड़ा हुआ है। 61 वर्ष पूर्व मैंने जन्म लिया था। जन्म लेना सृष्टि का नियम है। दुनिया का छोटे से छोटा प्राणी जन्म लेता है। जन्म लेना तो नियति के हाथ में है, पर जीवन जीना भी नियति पर हो सकता है, लेकिन हम पुरुषार्थ करें, नियति पर ही न छोड़ें। ‘जीवन मैं कैसे जीऊँ’ इस विषय पर आदमी का स्पष्ट चिंतन हो जाए तो एक जीवन की शैली का भी निर्धारण हो सकता है। दो प्रश्न हैं-जीवन क्यों जीना और कैसे जीना? श्वास तो हर संसारी प्राणी लेता है। जिसके जीवन में धर्म नहीं है, उनके दिन आते हैं, चले जाते हैं। जीवन जीने के अनेक लक्ष्य हो सकते हैं, पर एक परम लक्ष्य है-पूर्व में कृत कर्मों का क्षय करने के लिए शरीर को धारण कर जीवन जीएँ। आत्मा को निर्मल बनाकर मोक्ष प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ें।
ऐसा जीवन जीएँ कि जिससे हम मोक्ष के निकट हो सकें। कर्म करने की साधना करें। साधु सभी बन जाएँ, यह तो कठिन मार्ग है। सरल है-अगार धर्म, अणुव्रत धर्म। गृहस्थ में रहकर भी संवर-निर्जरा की साधना अणुव्रत के छोटे-छोटे नियमों से हो सकती है। जप, स्वाध्याय, ध्यान और निराहार की साधना करें तो पुराने कर्म कट सकते हैं। संयम की साधना से जीवन जीएँ। अहिंसा, संयम और तप की साधना की शैली से जीवन जीएँ। जीवन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति रहे। सरलता रहे, कथनी-करनी में अंतर न हो। संयम से स्वयं जीएँ और दूसरों के जीवन में अशांति न पैदा करें। हमें मानव जीवन मिला है, यह विशेष बात है, कारण धर्म की साधना जो मानव कर सकता है, दूसरे नहीं कर सकते।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि सहनशक्ति तीन तरह की होती है-कांच की खिड़की की तरह, काँच की दीवार की तरह और ईंट-सीमेंट की दीवार की तरह, जिनकी सहनशक्ति कमजोर होती है, वो काँच की खिड़की जैसे गेंद के एक प्रहार में टूट जाती है, वैसी होती है। काँच की दीवार कुछ मजबूत होती है, पर ईंट-सीमेंट की दीवार की तरह सहनशक्ति वाला व्यक्ति कभी हारता नहीं है। पूज्यप्रवर के स्वागत में महिला मंडल से चंदा चावत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।