अर्हम्

अर्हम्


तेरी नेहिल नजरों में ही आशियाना है हमारा प्रभो।
जीवन की हर साँसों पर अभिनंदन तुम्हारा प्रभो।।

रेशम किरणें बिछी नील नभ में, विरुदावलिया गावै है।
धरा का कण-कण आज, मधुर नज्में गुण गुणवै है।
दीक्षा दिवस पर बरसे, बरसे आनंद की अमृत धारा है।।

माँ नेमा तुम निरखो, तेरा परिजात आज तात बना।
चरण-चरण दे, तारण-तिरण, सबका यही नाथ बना।
श्वेत कणों का सिंचन देकर, नंदन वन सवारा प्रभो।।

करुणा के सागर तुम, श्रम के महाहिमालय हो।
कलाकार बेजोड़ तुम, मेरे तो परमेश्वर प्यारे हो।
बुनते जाओ जो बुनना है, तन-मन अर्पित सारा प्रभो।।

आलंबन स्त्रोत सदन में, एक तुम्हारी जड़ी सूरत।
करती अहर्निशी तेरी अर्चा, मेरे तो तुम ही राम मूरत।
तारो-तारो है अखिलेश्वर! पाऊँ भव किनारा प्रभो।।

लय: चांद सी महबूबा--