अर्हम्
गूंज रही है पुण्यऋचाएँ।
नव उमंग संग आज हम, मनोनयन का पर्व मनाएँ।।
जिस पौधे को गुरु तुलसी ने निज पर से इस गण में रोपा।
महाप्रज्ञ ने नव सृजन कर उसको पुनरपि गण को सोंपा।
महाश्रमण गुरुवर करुणाकर उसका नूतन रूप दिखाए।।
निज पौरुष से भाग्य गढ़ा है, नहीं अलसता तुम्हें सुहाती।
रात-दिवस अध्यात्म रश्मि ले, जलती अविरल जीवन बाती।
सहन समर्पण गुरु चरणों में, गुरु सेवा आनंद मनाएँ।।
धैर्य तुम्हारा अनुगत साथी, नस-नस में विश्वास भरा है।
कर्म निर्जरा लक्ष्य सामने, पल-पल में उल्लास भरा है।
पाकर शुभ संरक्षण तेरा, खुले प्रगति की नई दिशाएँ।।
दीक्षा दिन पर आर्यप्रवर ने दिया संघ को यह वरदान।
सुनकर यह उद्घोष सुहाना मुख-मुख परछाई मुस्कान।
करें कामना गुरु सन्निधि में, जन्म सदी का अवसर पाए।।