जिसका मन धर्म में रमा रहे उसे देवता भी करते हैं नमस्कार: आचार्यश्री महाश्रमण
धर्मपुर, वलसाड 17 मई, 2022
तेरापंथ के एकादशम् अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ अणुव्रत यात्रा के अंतर्गत प्रातः धर्मपुर स्थित श्रीमद्राजचंद्र मिशन में विशाल भव्य जुलूस के साथ पधारे। राकेश भाई ने पूज्यप्रवर की अगवानी की। श्रीमद् राजचंद्र मिशन में अनेक साधक-साधिकाएँ साधनारत हैं। परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन आगम के दसवेंआलियं के प्रथम अध्ययन के प्रथम श्लोक में धर्म की व्याख्या की गई है। ऐसा लगता है कि एक श्लोक में ही धर्म का सार भर दिया गया है। हमारी दुनिया में मंगल की कामना की जाती है। आदमी स्वयं व दूसरों के प्रति मंगलकामना अभिव्यक्त करता है। शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त देखना व पदार्थ-गुड़ चंवलेड़ी आदि मंगल के संदर्भ में प्रयास है, पर ये छोटे प्रयास हैं। शास्त्रकार ने उत्कृष्ट बात बताई है कि सबसे बड़ा मंगल है-धर्म। अहिंसा, संयम और तप धर्म है। जिसका मन इस धर्म में हमेशा रमा रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं। दुनिया में देव पूजा होती है। पर देव चौथे गुणस्थान से आगे नहीं बढ़ सकते। देवों के लिए साधु पूजनीय होते हैं, पर साधु के लिए देव पूजनीय नहीं होते। अध्यात्म साधना की ऊँचाई जो साधु में आ सकती है, साधना करते-करते केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है, पर देवता केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते।
अहिंसा-दया बहुत बड़ा धर्म है। हमारे आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु ने कहा है कि हम सब जीवों को अभयदान दें। अभयदान सबसे बड़ा दान है। आत्मा में ही हिंसा और अहिंसा के भाव होते हैं। जो अप्रमत्त है वह अहिंसक है। सब जीवों को आत्म तुल्य समझें। सम्यक्त्व के बिना चारित्र भावों में नहीं आ सकता है। दृष्टिकोण हमारा सही रहे। इंद्रियों व मन, वचन का संयम हो। तपस्या के बारह प्रकार हैं। इनकी जितनी साधना करें, हम मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। अणुव्रत-प्रेक्षाध्यान आदि अध्यात्म की साधना है। आज यहाँ राकेश भाई से मिलना हुआ है। यहाँ विशेष रूप से आए हैं। जहाँ साधना अध्यात्म की आराधना चले वह खास बात है। स्थान की अनुकूलता तो निमित्त बन सकती है। राकेश भाई अध्यात्म के प्रचार-प्रसार व उन्नयन में अपनी शक्ति का नियोजन करते हैं। श्रीमद्राजचंद्र शुद्ध साधक थे। अध्यात्म व यथार्थता जहाँ मिले, ले लेनी चाहिए।
श्रीमद् राजचंद्र मिशन के गुरुदेव श्री राकेशजी ने अपने संबोधन में कहा कि आज हम सबका अहोभाग्य है कि आज हमारे यहाँ गर्मी में बसंत ऋतु का आगमन हुआ है। आचार्यश्री महाश्रमण जी में ज्ञान की प्रगाढ़ता और वैराग्य भावना उत्कृष्ट है। अनेकानेक गुण संपन्न आचार्यश्री हैं। आपकी गुरु भक्ति और अंतर्मुखता बेजोड़ है। महान ब्रह्मचारी जैन धर्म की प्रभावना कर रहे हैं। आपका पुण्य वैभव और प्रज्ञा वैभव प्रकट है। उत्कृष्ट वक्ता और पवित्रता वैभव है। संसार में रहते हुए संसार से मुक्त हैं। विद्वान होते हुए विनम्र एवं वात्सल्य मूर्ति हैं। सत्पुरुष हिल स्टेशन के समान होते हैं, जिनके पास आते ही शीतलता का अनुभव होता है। सत्पुरुष की वाणी सुनने से समदृष्टि प्राप्त होती है। श्रीमद्राजचंद्र जी की वाणी है कि दृश्य को अदृश्य और अदृश्य को दृश्य दिया ऐसे अनंत वीर्यधारक की वाणी अंतर्मुखता को आमंत्रण देने वाली होती है। मोह का जोर सब जगह चलता है, पर ज्ञानी पुरुष के सामने मोह का जोर नहीं चलता है। ज्ञानी ने क्या किया व साधक को क्या करना है, यह महत्त्वपूर्ण है।
शब्द से जो मान दिया जा सकता है, वो पैसे से नहीं दिया जा सकता। सबके प्रति सद्भावना रखें। निंदा का जवाब अच्छे कार्यों से दें। जिसमें अहिंसा सिद्ध हो जाती है, उसके पास आने वाले लोग वैर-भाव को भूल जाते हैं। अहिंसा-शांति से विकास होगा। अहिंसा परम धर्म है। विरोध को भी विनोद के रूप में लें। सत्य की खोज और सबके प्रति मैत्री रखने से हमारा जीवन उन्नत बन सकता है। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने मंगल उद्बोधन देते हुए कहा कि मनुष्य जीवन मूल्यवान है। मशीन को आदमी बनाता है, पर मशीन आदमी को नहीं बना सकती। मनुष्य जीवन को मूल्यवान बनाने के लिए यह शरीर आवश्यक है। यशः शरीर से आदमी युगों-युगों तक याद किया जाता है। धर्म शरीर को भी हम पुष्ट बनाएँ।
पूज्यप्रवर के स्वागत में अणुव्रत समिति से निर्मला झाबक, तेयुप उपाध्यक्ष विजय बोथरा, टीपीएफ अध्यक्ष वीणा बोथरा, महिला मंडल अध्यक्षा करुणा, बाबूलाल सिंघवी, जैन श्वेतांबर संघ से नंदलाल मेहता, राजेश दुगड़, संजय भंडारी, दर्शन भंडारी, मुस्कान बोथरा, प्रेक्षा कच्छारा, नथमल घोघड़ ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कन्या मंडल व ज्ञानशाला की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।