सत्य की खोज के लिए अनाग्रह का भाव जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सत्य की खोज के लिए अनाग्रह का भाव जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण

वापी, 22 मई, 2023
वापी में प्रवास के दूसरे दिन शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अमृत वर्षा करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान दो प्रकार का होता है। एक बाहर से लिया जाने वाला ज्ञान और दूसरा भीतर से उठने वाला ज्ञान। जिसे आत्म-समुत्थ या अतीन्द्रिय ज्ञान भी कहा जा सकता है। यह ज्ञान विशेष होता है। इस ज्ञान के माध्यम से व्यक्ति को सत्य की खोज करनी चाहिए। एक कुंड का पानी होता है और एक कुएँ का। कुंड में तो बाहर से जितना पानी डाला जाएगा उतना पानी हम वापस निकालकर काम में ले सकते हैं। जबकि कुएँ का पानी भीतर के òोत से आने वाला पानी होता है। इसी प्रकार हम कुछ ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से ग्रहण करते हैं। विद्यालयों में पढ़ना या किसी के द्वारा ज्ञान ग्रहण कराया जाना ज्ञान कुंड के पानी की तरह हो सकता है।
केवलज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान, अवधिज्ञान ये अतीन्द्रिय ज्ञान हैं कुछ ज्ञान जिनकी भीतर से स्फुरणा होती है, प्रज्ञा जागरण या मति-श्रुत का विशिष्ट ज्ञान भी हो सकता है। आदमी अपने चिंतन-मनन से तत्त्व का निचोड़ निकाल सकता है, ये सब आत्म-समुत्थ या उसके आसपास का ज्ञान हो सकता है। शास्त्रकार ने कहा है कि आत्मना स्वयं सत्य की खोज करो। स्वयं साक्षात्कार करें। सत्य की खोज के लिए अनाग्रह भाव होना जरूरी है और साथ में सत्यान्वेषण का प्रयास भी हो। कूपमंडुक न बनें। प्राणियों के प्रति मैत्री करें। प्रेक्षाध्यान में भी यही प्रयोग कराया जाता है। दूसरों के अहित में ज्ञान का प्रयोग न हो।
जगत स्थिर है, संसार सिर्फ कल्पना है। हमें जो मन दिखाता है, वो हम देखते हैं, पर वास्तविकता को नहीं देखते। जो जागृत है, वो साधु है। अज्ञानी इंद्रिय सुख में संसार में भटकता रहता है। सुपात्र आदमी तो ज्ञानी के एक वचन से जागृत हो जाता है। सफेद बाल और गिरते हुए सूखे पान से हम प्रेरणा लें। मैं अंतर्मुखी बनता रहूँ इसके लिए पुरुषार्थ करता रहूँ, यही कामना है। दोपहर में प्रेक्षाध्यान व जिज्ञासा-समाधान पूज्यप्रवर की सन्निधि में रखा गया। सायं भक्ति का कार्यक्रम हुआ। मुनि कुमार श्रमण जी ने समझाया कि ऐसा लगता है जैसे दो समुद्रों का मिलन होता है, वैसे दो साधकों का मिलन हुआ है। आज उत्सव का माहौल है। श्रीमद्राजचंद्र एवं राकेश भाई से पुराना संबंध है। आचार्यश्री के भी इस मिशन के प्रति प्रेम के भाव हैं। कार्यक्रम का संचालन मौलिक भाई ने किया।