धर्म का मूल है समता की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

संस्थाएं

धर्म का मूल है समता की साधना: आचार्यश्री महाश्रमण

अम्भेटी, वलसाड 20 मई, 2023
जन-जन के उद्धारक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने शनिवार को अम्भेटी में मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि अध्यात्म की साधना में और व्यवहार में भी कुछ अंशों में समता की साधना का अत्यंत महत्त्व है। मोक्ष का मार्ग ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है। चारित्र की जो साधना है, वह समता की साधना है। समभाव चारित्र है। वीतरागता भी समता ही तो है। पाँच महाव्रत भी समता से ही जुड़े हैं। समता के मूल को सींचन मिलता रहेगा तो ऊपर का सब ठीक रहेगा। ऊपरी सींचन से मूल सूख सकता है, यह एक प्रसंग से समझाया।
समता की साधना धर्म का मूल है। समता की साधना से ही अन्य व्रतों की साधना हो सकती है। लाभ हो या अलाभ, सुख या दुःख, जीवन या मरण, निंदा या प्रशंसा सबमें समता रखो। समता धर्म को समझ कर इसे समझने का प्रयास करें। बड़ों का बड़प्पन इसी में है कि वह समता रखें। छोटा हो या बड़ा समता धर्म सबके लिए कल्याणकारी हो सकता है। व्यापार हो या व्यवहार सब जगह समता आवश्यक है। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय सरपंच योगेश भाई, स्कूल के प्रिंसिपल गजेंद्र भाई ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने स्कूल के अध्यापकों को अहिंसा यात्रा के तीन संकल्प स्वीकार करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।