रूं रूं मं रमे हो

रूं रूं मं रमे हो

रूं रूं में रमे हो तुम, साँसों में बसे हो तुम।
तुलसी गुरु हो मेरे तुलसी गुरु, नित उठ तेरा ध्यान धरूँ।।
तुलसी प्रभु हो मेरे तुलसी प्रभु, पल पल तेरा स्मरण करूँ।। आं।।

निर्विकार आभामंडल, शरणागत के तुम संबल।
महाप्रतापी गुरुवर की, यश लहरें ज्यों सागर की।।1।।

नाम तेरा मंगलमय है, शरण तेरी चैत्यालय है।
कलियुग में तुम थे अर्हम्, कानों में गूँजे सरगम।।2।।

नफरत की दीवारें तोड़, बने विश्व के तुम सिरमौर।
मानव मन को बांधा था, विपरीतों को साधा था।।3।।

नभ में जब तक नीलिमा, वसुंधरा पर हरीतिमा।
तब तक तुमको ध्यायेंगे, उत्सव रोज मनायेंगे।।4।।

अनुशासन के रूप हो, जन-जन के मन भूप हो।
लो सबकी श्रद्धांजलियां, गाये युग विरुदावलियां।।5।।

लय: कली कली खिल रही----