आचार्यश्री तुलसी के 27वें महाप्रयाण दिवस पर
शासनश्री मुनि विजय कुमार
गुरु तुलसी की गौरव गाथा, जन-जन अपने मुँह पर गाता,
महापुरुषों में वह था विशिष्ट, हर कोई का सिर झुक जाता,
गुरु तुलसी की जय बोलें, आत्मा का कल्मष धो लें,
बलिहारी, गुरुवर की जायें हम।
भावों में श्रद्धा घोलें, मन मंदिर के पट खोलें, बलिहारी---
कार्तिक शुक्ला दूज दिवस खटेड़ कुल में खुशियाँ छाई,
माँ वदना को यह रत्न मिला, सौभाग्यवती वह कहलाई,
कुमकुम के पदचिÐ देख, बोले सब सुत है वरदायी,
है चहल-पहल घर में विशेष, बासंती बयार ज्यों आई,
गुरु तुलसी की जय बोलें---बलिहारी, गुरुवर की जायें हम।
जय हो, जय-जय हो, जय-जय हो, जय हो।।1।।
कालू गुरु चंदेरी आये, आभामंडल का आकर्षण,
बालक का है ज्यों भाग्य खिला, करता है बार-बार दर्शन,
प्रकटी है पिछली पुण्यायी, अर्पित कर दूं इनको जीवन,
संयम पथ को स्वीकार करूं, इन चरणों का लूं आलंबन,
गुरु तुलसी की---बलिहारी गुरुवर की जायें हम, जय हो---।।2।।
बाइस वर्ष की लघुवय में, गण का नेतृत्व संभाल लिया,
शासन की महिमा खूब बढ़ी, संत-सतियों का निर्माण किया,
नहीं भाग्य भरोसे रहा कभी, पौरुष का जीवन सदा जिया,
लंबी-लंबी यात्रा करके, सबको अणुव्रत का संदेश दिया,
गुरु तुलसी की---बलिहारी गुरुवर की जायें हम, जय हो---।।3।।
वह महापुरुष था अलबेला, अवदानों से इतिहास भरा,
मुस्कानों का बहता निर्झर, वह खिलता ज्यों उद्यान हरा,
थी हुई कसौटी जीवन में, पर वह उतरा हर बार खरा,
उसके जय-जय के नारों से, है ‘विजय’ गूंजती गगन धरा,
गुरु तुलसी की---बलिहारी गुरुवर की जायें हम, जय हो---।।4।।