इहलोक व परलोक दोनों के लिए हितकारी श्रमण धर्म: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

इहलोक व परलोक दोनों के लिए हितकारी श्रमण धर्म: आचार्यश्री महाश्रमण

धर्मपुर, वलसाड (गुजरात) 18 मई, 2023
आत्म-साधना के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमण जी का श्रीमद्राजचंद्र मिशन का दूसरे दिन के प्रवास पर राकेश भाई ने प्रातः परम पूज्य व धवल सेना को विशाल आश्रम का अवलोकन करवाया। बड़ा ही सुंदर, रमणीय और प्राकृतिक छटाओं से निर्मित है, यह आश्रम। पूज्यप्रवर द्वारा नमस्कार महामंत्र के उच्चारण से मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि दसवें आलियं आगम के एक श्लोक में बताया गया है कि श्रमण धर्म एक ऐसा मार्ग है, जिसके द्वारा इहलोक हित तो होता ही है, परलोक हित भी होता है और सुगति की प्राप्ति भी होती है। भगवान महावीर के शासन में चार तीर्थ हैंµसाधु-साध्वी, श्रावक और श्राविका। आचार्य भिक्षु के साहित्य में आया है कि साधु और श्रावक दोनों रत्नों की माला है, किंतु एक बड़ी माला है, दूसरी छोटी माला है। श्रावक में जो त्याग-व्रत है, उस अपेक्षा से वो रत्नों की माला है। सांसारिक कार्यों की अपेक्षा से नहीं।
शास्त्रों में बताया गया है कि श्रमण धर्म की जानकारी किससे लें? यूँ तो ज्ञानी से जानकारी मिल सकती है, पर यहाँ बताया गया है कि जो बहुश्रुत साधु है, उनकी पर्युपासना करें, प्रश्न करें और अर्थ का निश्चय करें। श्रामण्य प्राप्त होना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। उसके सामने गृहस्थों के पास कितनी ही संपति हो, वह तुच्छ है। श्रामण्य तो हमारे आगे के मार्ग को भी प्रशस्त करने वाला बन सकेगा। साधु को पहले सामायिक चारित्र ग्रहण कराया जाता है। बाद में बड़ी दीक्षा के रूप में छेदोपस्थापनीय चारित्र ग्रहण कराया जाता है। यथाख्यात चरित्र तो बड़ी ऊँची चीज है, वह वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। चारित्र के लिए सम्यक् ज्ञान जरूरी है। सम्यक्त्व के बिना चारित्र टिक नहीं सकता। बहुश्रुत से ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। प्रश्न करने से ज्ञान का विकास हो सकता है। विद्यार्थी जिज्ञासु है, तो अध्यापक को और खोजने का अवसर मिल सकता है। बहुश्रुत से श्रामण्य की जानकारी करने से हमारे में श्रामण्य का भाव आ सकता है, हम मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
आज जेष्ठ कृष्णा चतुर्दशी है, हर चतुर्दशी को मर्यादाओं का वाचन होता है। मर्यादा महोत्सव तो वर्ष में एक बार माघ शुक्ला सप्तमी को आता है। चार बातें हैंµआचार, विचार, मर्यादा और प्रेरणा। पूज्यप्रवर ने मर्यादाओं का वाचन कर प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। मुनि दिनेश कुमार जी एवं मुनि कुमार श्रमण को लेख-पत्र उच्चारण करने का निर्देश दिया। हमारी संवर-निर्जरा की साधना अच्छी चलती रहे। सात वर्ष पूर्व आज के दिन मैंने मुनि महावीर कुमार को मुख्य मुनि पद पर नियुक्त किया था। उससे दो दिन पूर्व साध्वी सम्बुद्धयशा को साध्वीवर्या पद पर नियुक्त किया था। साध्वीप्रमुखाश्री जी का भी चयन दिवस वैशाख शुक्ला चतुर्दशी है। तीनों के प्रति हमारी शुभाशंषा।
हमारा यहाँ धर्मपुर आना हुआ, राकेश भाई से मिलना हुआ। कल उनसे वार्ता भी हुई थी। यहाँ पर आध्यात्मिक-धार्मिक गतिविधियाँ व साधना अच्छी चलती रहे। हमें यहाँ वात्सल्य-स्नेह के साथ अच्छा स्थान मिला। यहाँ के प्रति हमारी मंगलकामना है कि यह संस्थान खूब धार्मिक-आध्यात्मिक विकास करता रहे। राकेश भाई जी भी खूब आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करते रहें। देश-विदेश में अहिंसा का प्रसार होता रहे। कई-कई साधक गृहस्थों से भी प्रेरणाएँ ली जा सकती हैं। पूज्यप्रवर ने ध्यान का प्रयोग भी करवाया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरु ने शिष्य के प्रश्न को समाहित करते हुए कहा कि जो दिखाई दे रहा है, वह पुद्गल है, जो तुम देख रहे हो, वह आत्मा है। कभी-कभी लगता है कि हमारा जीवन ही पुद्गल सापेक्ष है। प्रारंभ में तो पुद्गल का सेवन अच्छा लगता है, पर अंत में उनमें नीरसता आ जाती है। पर अध्यात्म के क्षेत्र में प्रारंभ में तो नीरसता की अनुभूति होती है पर बाद में धीरे-धीरे उसमें सापेक्षता आने लगती है। जब व्यक्ति आत्म-दर्शन की स्थिति में चला जाता है, उसे आनंद आने लगता है। शरीर कृश हो सकता है, पर आत्मा का बगीचा हरा-भरा रहता है। पर दोष-दर्शन से आत्म-दर्शन नहीं हो सकता। हम सब आत्म-दर्शन करें। आचार्यप्रवर बाहर में जीकर भी भीतर जी रहे हैं। ध्यान भी एक इसका साधन बन सकता है। व्यवस्था समिति की ओर से राकेश भाई का साहित्य द्वारा सम्मान किया गया। आत्मार्थी मौलिक भाई ने आभार ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।