कर्म बंध से मुक्ति के लिए संवर की साधना करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

कर्म बंध से मुक्ति के लिए संवर की साधना करें: आचार्यश्री महाश्रमण

नाना पोंडा, वलसाड 19 मई, 2023
महान परिव्राजक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने कल शाम धर्मपुर से विहार कर दिया था। प्रातः लगभग 14 किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान का नाना पोंडा के स्वामी नारायण विद्या संस्थान में प्रवास हेतु पदार्पण हुआ। यहाँ पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए परम पूज्य ने फरमाया कि हमारी सृष्टि क्या है? यह दुनिया क्या है? यह लोक-दुनिया छः द्रव्यों वाली है। जैन दर्शन के अनुसार यह दुनिया छः द्रव्यात्मक है। इनमें ज्ञातव्य, परिहर्तव्य और कर्तव्य क्या है? दुनिया क्या चीज है? हम मानव जीवन जी रहे हैं, हम करें क्या? क्या ग्रहण करें, क्या छोड़ें, कैसे हमारी आत्मा का उत्थान हो? इस जिज्ञासा को समाहित करने के लिए नव तत्त्ववाद है। छः द्रव्य अस्तित्ववाद में हैं और नौ तत्त्व उपयोगितावाद के संदर्भ में हैं। अध्यात्म की साधना और आत्म कल्याण के नौ तत्त्वों का विशेष महत्त्व है।
जिसमें चैतन्य है, वह जीव है, जिसमें चैतन्य नहीं होता वह अजीव है। वैसे जीव-अजीव में सारे तत्त्व आ जाते हैं। दुनिया में जो कुछ है, वह जीव है या अजीव है। छः द्रव्यों में भी एक जीव पाँच अजीव हैं। बंध के कारण से अजीव शरीर का आत्मा रूपी जीव से जोड़ा हुआ है। कर्मों का बंध पुण्य या पाप रूप में हो सकता है। आश्रव के द्वारा कर्मों का बंध होता है। आश्रव संसार भव का हेतु है। कर्म बंध से मुक्ति के लिए संवर की साधना परिपुष्ट करें। कर्म न बंधे उसका उपाय है-संवर। संवर मोक्ष का कारण है। 12345 की समस्या को विस्तार से समझाया कि किस तरह पाँच आश्रवों को रोकने से कितना लाभ होता है। पूर्व में बंधे कर्मों को तोड़ने का उपाय, आत्मा की आंशिक उज्ज्वलता निर्जरा है। आत्मा की संपूर्ण कर्म मुक्ति मोक्ष की अवस्था है। नौ तत्त्वों को तालाब के दृष्टांत से समझाया।
तत्त्व-बोध आत्म-कल्याण के संदर्भ में बड़ा महत्त्वपूर्ण है। अध्यात्म के सार के रूप में यह नव तत्त्ववाद है। नव तत्त्व को समझकर उन पर श्रद्धा कर लेना सम्यक्त्व है। हमारा ज्ञान सम्यक् रहे, पुष्ट से पुष्टतर होता रहे, यह काम्य है। आज स्वामी नारायण संस्थान में आए हैं, यहाँ भी खूब अध्यात्म की साधना होती रहे। पूज्यप्रवर के स्वागत में स्वामी नारायण संस्थान के मैनेजिंग ट्रस्टी हरिवल्लभ दास जी एवं अनिल भाई ने पूज्यप्रवर की अभ्यर्थना की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।