सत् साहित्य पढ़ें, सदाचरण करें: आचार्यश्री महाश्रमण
भिलाड़-सरीगाम, 25 मई, 2023
महापथ अनुगामी आचार्यश्री महाश्रमण जी वृहद मुंबई की ओर अग्रसर हैं। गुरुवार को भिलाड़ में परम पावन ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र में कहा गया कि पहले ज्ञान फिर दया-आचरण। हमारी दुनिया में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान हमारा ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम या क्षय से संबंधित है। हम कौन-सा ज्ञान अर्जित करें? शब्द शास्त्र-ज्ञान तो अनंत है। जीवन अल्पकाल है और कई बार बाधाएँ भी आ जाती हैं। जो सारभूत है, उसकी उपासना करो। जो उपयोगी ज्यादा है, उसको ग्रहण करें।
सत्-साहित्य की संगत करें। कुछ गहरे ग्रंथों को पढ़ने का प्रयास करें तो गहरी बात जानने को मिल सकती है। ज्ञान प्राप्त कर सम्यक् आचार करो। आचार शून्य ज्ञान और ज्ञान शून्य आचार दोनों ही मानो अधूरे हैं। दोनों साथ होने से जीवन अच्छा बन सकता है। विद्यालयों में ज्ञान के साथ जब आचार मिलता है, तो विद्यार्थियों में परिपूर्णता आ सकती है। संस्कार अच्छे हों। जीवन विज्ञान से आचार अच्छा मिल सकता है। जीवन में ईमानदारी, नैतिकता हो तो उसकी चेतना अच्छी रह सकती है। आगे भी अच्छा होने की संभावना रह सकती है।
अनेक धर्म पंथ हैं, अनेक संत हैं। वे संत अपने-अपने अनुयायियों को धर्म के अच्छे संस्कार देने की प्रेरणा देते रहें तो आदमी कल्याण की दिशा में आगे बढ़ सकता है। आज यहाँ स्वामी नारायण संस्थान में आए हैं, भिलाड़ में अच्छा धार्मिक उत्थान का काम चलता रहे। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि ईशु ने कहा है, जो आदमी बच्चे की तरह होता है, वह परमात्मा के राज्य में प्रवेश कर सकता है। वह सहज और सरल होता है। भगवान महावीर ने भी धर्म के चार द्वार बताए हैंµउनमें एक हैµऋजुता। परम पूज्य जहाँ भी जाते हैं, लोग खींचे चले आते हैं, कारण आपमें ऋजुता है।
पूज्यप्रवर के स्वागत में निगम भाई वैध, अजयराज फूलफगर, स्वामी नारायण गुरुकुल से सम स्वामीजी, पूर्व मंत्री रमणभाई पाटकर ने अपनी-अपनी भावनाएँ अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया। अणुव्रत समिति द्वारा स्वामीजी व रमणभाई का सम्मान किया गया।