महाप्रज्ञ के जीवन को शब्दों में बांधना संभव नहीं

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महाप्रज्ञ के जीवन को शब्दों में बांधना संभव नहीं

मदनगंज-किशनगढ़
आचार्यश्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी मधुरेखाजी के सान्निध्य में प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के 104वें जन्मोत्सव को प्रज्ञा दिवस के रूप में मनाया। कार्यक्रम का शुभारंभ महिला मंडल की बहनों के मंगलाचरण से हुआ। सभा अध्यक्ष मानकचंद गेलड़ा, महिला मंडल पूर्व अध्यक्षा नगीना गेलड़ा, मिटू देवी बैंगानी ने गीतिका एवं वक्तव्य के द्वारा अपने विचार व्यक्त किए। साध्वी मंजूयशाजी ने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के व्यक्तित्व एवं कृर्तत्व पर प्रकाश डाला। साध्वी सुव्रतप्रभाजी एवं साध्वी लोकोत्तरप्रभाजी ने कविता के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किए। साध्वी मधुरेखाजी ने अपने मंगल उद्बोधन में बालक नथमल से आचार्यश्री महाप्रज्ञ तक की यात्रा को व्याख्यायित किया।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी एक योगी संत थे, जो एक पंथ के न होकर पूरे मानव जाति के संत थे। वे राष्ट्रपति भवन मे रहने वालांे के लिये वंदनीय रहे तो साथ ही झोपड़ी में रहने वालो के लिए भी पूजनीय बने। आचार्यश्री महाप्रज्ञ के दो अवदान ‘प्रेक्षाध्यान’ एवं ‘जीवन विज्ञान’ जो आज सिर्फ भारत के लोगों के लिये नहीं अपितु पूरे विश्व के लोगों के लिये उपयोगी बने हुए हैं। अगर इन्हें कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में अपना ले तो अपना जीवन सफल बना सकता है। कार्यक्रम का कुशल संचालन सभा मंत्री डॉ अजय कवाड़ ने किया। कार्यक्रम में तेरापंथी सभा, तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल के सदस्यों की अच्छी उपस्थिति रही।