अवबोध

स्वाध्याय

अवबोध

कर्मबोध
प्रश्न १६ - कर्मों का अस्तित्व (सत्ता) कौन से गुणस्थान तक है ?
उत्तर: मोहनीय कर्म का अस्तित्व ग्यारहवें गुणस्थान तक रहता है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अंतराय कर्म का बारहवें गुणस्थान तक रहता है। शेष चार अघात्य कर्म का चौदहवें गुणस्थान तक रहता है।
प्रश्न १७- कर्म किसे कहते हैं ?
उत्तर: चार अघात्य कर्म ही भवोपग्राही कर्म हैं। ये कर्म जीवन के अंत तक रहते हैं। इस दृष्टि से इन्हें भवोपग्राही कर्म कहते हैं। ये चौदहवें गुणस्थान तक बने रहते हैं।
प्रश्न १८ - कर्म के क्या कार्य हैं?
उत्तर:  ज्ञानावरणीय - ज्ञान-प्राप्ति में बाधा
दर्शनावरणीय - दर्शन-प्राप्ति में बाधा
वेदनीय - सुख व दुःख की अनुभूति
मोहनीय - मूढ़ता की उत्पत्ति
आयुष्य - भव स्थिति
नाम - शुभ-अशुभ शरीर निर्माण, अंगोपांग आदि
गोत्र - अच्छी व बुरी दृष्टि से देखे जाना
अंतराय - आत्म शक्ति की उपलब्धि में बाधक
प्रश्न १६- कर्म की स्थिति कितनी है ?
उत्तर: कर्म जघन्य उत्कृष्ट
ज्ञानावरणीय अन्तर्मुहर्त्त    30 करोड़ाकरोड़ सागर
दर्शनावरणीय अन्तर्मुहर्त्त 30 करोड़ाकरोड़ सागर
वेदनीय अन्तर्मुहर्त्त 30 करोड़ाकरोड़ सागर
दर्शन मोहनीय अन्तर्मुहूर्त 70 करोड़ाकरोड़ सागर
चारित्र मोहनीय अन्तर्मुहूर्त 40 करोड़ाकरोड़ सागर
आयुष्य  - अन्तर्मुहूर्त     करोड़ पूर्व के एक तिहाई भाग
    अधिक ३३ सागर
नाम 8 मुहूर्त्त 20 करोड़ाकरोड़ सागर
गोत्र 8 मुहूर्त्त 20 करोड़ाकरोड़ सागर
अन्तराय अन्तर्मुहूर्त 30 करोड़ाकरोड़ सागर       (क्रमशः)