अर्हम

अर्हम

आपरै भागां री, के कहंू मैं बात।
जिन भावां स्यू संथारो पचख्यो, पूर्ण कियो साक्षात।।
सपरिवारे संजम लीनो, बणी नूई आं ख्यात।
जय-जयकारे गूंज रह्या है, जीवन जीया अवदान।।
सिंहवृत्ति स्यूं संजम लीन्हो, कर्यो थे म्हानै मात।
वैराग को हुयो भाव बाद में, आ पहली क्यूं बात।।
तप-जप में थे रत रहता, आ थारी करामात।
सहज समता भाव बहता, बात नहीं अज्ञात।।
खुली पोथी जीवन थारो, सबमें है विख्यात।
भीतर बारै एक सम हाँ, संशय नहीं तिलमात।।
एवं खु तस्स सामण्णं ओ, सूत्र णै प्रणिपात।
खणं जाणाहि पंडिए हाँ अवसर तहकीकात।।
बीमारी में तप कमाण ले, कर्मा री कीनी घात।
भव भ्रमण अल्पीकरण कर, पूर्ण करो यातायात।।
इती भी केे जल्दी कर्यांथं, बंद हूता के खात।
महाप्रज्ञ महाश्रमण किरपा, लुटाई दोन्यू हाथ।।
धर्मेश धीरज लाभ उठायो, सेवा कर निःस्वार्थ।
नीति तन्मय साज दिरा जो, आ म्हारी फरियाद।।

लय: आपणै भागां री