जैनचार्यों में विशिष्ट आचार्य थे गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जैनचार्यों में विशिष्ट आचार्य थे गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी : आचार्यश्री महाश्रमण

आईलेंड कल्ब रिसोर्ट 6 जून 2023।
गणाधिपति गुरुदेव तुलसी का 27वां महाप्रयाण दिवस। आज ही के दिन गंगाशहर के तेरापंथ वन में 26 वर्ष पूर्व गुरुदेव तुलसी का महाप्रयाण हुआ था। नैतिकता का शक्तिपीठ गंगाशहर में ी ावांजलि एवं क्ति संध्या का कार्यक्रम रखा गया। 
आचार्य तुलसी के पट्टधर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुदेवश्री तुलसी को ावांजलि अर्पित करते हुए फरमाया कि आकाश में नक्षत्र तारा से परिवृत चन्द्रमा चान्दनी से युक्त, बादलों से मुक्त स्वच्छ आकाश में शोित होता है।
शास्त्रकार ने कहा है कि इसी प्रकार गणी िक्षुओं के मध्य में िक्षुओं से परिवृत शोित होता है। जैन शासन में आचार्यगणी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। जैन शासन में वर्तमान में अनेक सम्प्रदाय हैं। मुख्यतया दो संप्रदाय है- दिगम्बर और श्वेताम्बर। दो आम्नाय में विश्वास करने वाले सम्प्रदाय है। एक मूर्ति पूजा और एक अमूर्तिपूजक विचारधारा वाले।
कुछ विचारधाराओं में मूर्ति पूजा मान्य है और अनेक विचारधाराओं में मूर्ति पूजा को महत्व नहीं दिया गया है। श्वेताम्बर अमूर्ति पूजा में मुख्यतया दो आम्नाय स्थानकवासी और तेरापंथी। तेरापंथ के प्रथम आचार्य परमपूज्य िक्षु स्वामी हुए। आचार्य िक्षु ने नयी दीक्षा ले इस तेरापंथ धर्मसंघ को स्थापित किया उसे लगग 263 वर्ष हो रहे हैं।
तेरापंथ में अतीत में दस आचार्य हो गये हैं। आदमी कितने-कितने जन्मों में साधना करता है, तो अच्छी निष्पति प्राप्त हो सकती है। ैक्षव शासन में आचार्यश्री तुलसी हमारे नवमें सम्राट बने। लगग 22 वर्ष की उम्र में धर्मसंघ के अधिशास्ता बन गये। इतनी उम्र में आचार्य पद पर आ जाना एक विशेष भाग्योदय का परिचायक प्रतीत हो रहा है।
पूर्व पुण्य का योग होता है तो संावना है कि ऐसे पद पर कोई प्रतिष्ठित होता है। पूज्य कालूगणी का साहस ी था कि इतनी छोटी उम्र में मुनि तुलसी को युवाचार्य बना दिया। आचार्यश्री तुलसी ने शुरु के वर्ष निर्माण के कार्य में लगाये। मानव कल्याणकारी कार्यक्रम अणुव्रत आन्दोलन को शुरु किया। इससे तेरांपथ को व्यापकता प्राप्त हुई। जैन-जैनेतर व राजनेताओं  से ी संपर्क हुआ। राजनीति में ी धर्म और संयम की बात बताने का मौका मिला।
आचार्यश्री तुलसी के जीवन में पुण्याई का दर्शन करता हूं। उनके चेहरे का विशेष आकर्षण था। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने उनके व्यक्तित्व के बारे में लिखा है- ‘कानों की छटा निराली, आंखें अमृत की प्याली, किसने सौन्दर्य सजाया रे। महाप्राण गुरुदेव।’ बाह्य व्यक्तित्व में ी पुण्य का योग होता है। स्वास्थ्य ी प्रायः अनुकूल रहता था।
पद पर आना एक बात है, पद पर आकर धर्मसंघ की सेवा करना खास बात है। जन्म देना ी एक बात है, पर बाद में लालन-पालन करना विशेष बात है। पूरे धर्मसंघ को संालते। कितनी लंबी यात्राएं की थी। कितना जन सम्पर्क किया था।
आज के दिन गंगाशहर में बोथरा वन से तेरापंथ वन पधारे थे। थोड़ी देर में सारा दृश्य बदल गया। तेरापंथ के धर्म सम्राट आज के दिन संसार से विदा हो गये थे। जैनाचार्यों में आचार्यश्री तुलसी विशिष्ट व्यक्तित्व थे। देश क्या, विदेश क्या? आचार्यश्री तुलसी नाम था। कितने-कितने आयाम तेरापंथ में प्रारं हुए थे। अपने जीवन काल में आचार्य पद को छोड़ महाप्रज्ञजी को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर दिया था। वे एक विलक्षण आचार्य थे। 
मेेरे जैसे कितने साधु- साध्वियों को उनके निर्देशन में आगे बढ़ने का मौैका मिला था। आचार्यश्री महाप्रज्ञ ने ी धर्मसंघ को अच्छी तरह संाला था। आज आचार्यश्री तुलसी की 27वीं वार्षिक पुण्यतिथि है। गंगाशहर में उनका समाधि स्थल शक्तिपीठ है। गुरुदेव ने कहा था कि मैं उपर जाकर ी देखूंगा सो गुरुदवे की जो ी कृपा हो, उनसे प्रेरणा पथदर्शन प्राप्त होता रहे। हम जैसे कितनों पर उनका उपकार है। बार-बार उनको श्रद्धांजली।
साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभाजी ने श्रद्धा अर्पित करते हुए कहा कि किसने सोचा था कि इतना छोटा बच्चा संन्यास ग्रहण कर पूरे धर्मसंघ का नेतृत्व करेगा। धर्मसंघ को आकाशीय ऊंचाइयां देगा। जो व्यक्ति पुण्यशाली होता है, वही व्यक्ति इस मार्ग को स्वीकार करता है, इस पद को स्वीकार करता है। कालूगणी की नजर पड़ी और उन्होंने कालूगणी का स्नेह और वात्सल्य प्राप्त किया और सबसे अधिक प्राप्त किया उनका विश्वास। आगम संपादन जैसे अनेक महायज्ञ- अवदान धर्मसंघ को प्रदान करवाये थे। गुरूदेवश्री तुलसी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मुनि अनेकान्त कुमारजी ने गीत ‘तुलसी तुलसी ध्याउं...’ गीत का संगान किया। मुनि अिजीत कुमारजी ने संस्कृत ाषा में अपने ावों की अिव्यक्त दी।
विरार से अजयराज फूलगर ने 30 की तपस्या का प्रत्याख्यान पूज्यवर से ग्रहण किया। संतोष हिरण ने अठाई की तपस्या का प्रत्याख्यान लिया। 
कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।