जीवन जीने का परम लक्ष्य ऐसा हो कि आगे कभी जन्म लेना ही न पड़े : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन जीने का परम लक्ष्य ऐसा हो कि आगे कभी जन्म लेना ही न पड़े : आचार्यश्री महाश्रमण

प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के 104वें जन्मदिवस का अयोजन

मलाड पश्चिम 16 जून 2023
शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ विहार कर मलाड पश्चिम पधारे। मंगल देशना प्रदान कराते हुए महासंत ने फरमाया कि जीवन तो हर प्राणी जीता है। जीवन जीना बड़ी बात बात नहीं है। उद्देश्यपूर्ण जीवन जीना बड़ी बात है। उद्देश्य भी बढ़िया हो, प्रयोजन अच्छा हो। संसार में जन्म-मरण की परंपरा तो चलती रहती है। जीवन जीने का परम लक्ष्य यह होना चाहिये कि आगे कभी जन्म लेना ही न पड़े। अंतिम और परम लक्ष्य मोक्ष है, इसके लिए आत्म साधना आवश्यक है। रत्नत्रय की आराधना और कषाय मुक्ति की साधना आवश्यक है। वेशभूषा और संप्रदाय तो बाद की बात है।
आज आषाढ़ कृष्णा त्रयोदशी परमपूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का 104वां जन्मदिवस है। टमकोर जैसे छोटे से गांव में वि.स. 1977 में उनका जन्म हुआ था। 11 वर्ष की अवस्था में सरदारशहर में पूज्य कालूगणी के हाथों दीक्षा हुई थी। मुनि तुलसी उनके शिक्षक रहे थे। आगे बढ़ते-बढ़ते वे एक विद्वान-दार्शनिक संत के रूप में सामने आये। धर्मसंघ के विकास में वे आचार्यश्री तुलसी के सहयोगी रहे। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का विशाल साहित्य महाप्रज्ञ वाङ्मय के रूप में हमारे सामने है। अनेक विषयों पर उनका सािहत्य है। आचार्यश्री तुलसी ने अपने जीवनकाल में ही उनको आचार्यपद पर आसीन कर दिया था। वे एक विलक्षण आचार्य थे। आगम संपादन के महान कार्य में उनका विशेष योगदान रहा था। प्रेक्षाध्यान-जीवन विज्ञान उनके अवदान रहे हैं। जैन योग पुनरूद्धारक के रूप में उनको संबोधित किया गया था।
जन्म लेना एक बात है, पर जीवन में कुछ अच्छा करना विशेष महत्व की बात है। आदमी को सत्‌‍पुरूषार्थ करना चाहिये। ऐसे संत-पुरूषों से हमें प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिये। लगभग 80 वर्षों का उनका संयम पर्याय रहा। मैं उनका स्मरण कर उनके प्रति श्रद्धा अर्पण करता हूं। उनके जीवन से लोगों को अपने जीवन का अच्छा लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रहे। साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के प्रति अपने श्रद्धाभाव अभिव्यक्त करते हुए फरमाया कि जिस आदमी को शुभ दीर्घ जीवन पर्याय मिलता है, वह महत्वपूर्ण होता है। शुभ दीर्घ आयुष्य वह होता है, जिसके साथ सत्यं शिवं और सुंदरम की युुति जुड़ जाती है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को भी शुभ दीर्घ आयुष्य मिला था। उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली, तेजस्वी, ओजस्वी और वर्चस्वी था।पूज्यवर के स्वागत में दतपत बाबेल, विद्यालय से डॉ. विनय जैन, संजीव नायक ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का कुशाल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।