दुष्प्रवृति में लगी हमारी आत्मा कभी मित्र नहीं बनती : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

दुष्प्रवृति में लगी हमारी आत्मा कभी मित्र नहीं बनती : आचार्यश्री महाश्रमण

कांदिवली, 14 जून 2023
कांदिवली प्रवास का दूसरा दिन। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने फरमाया कि शास्त्र में मित्र और मैत्री के संबंध में बताया गया है। मित्र के संबंध में बताया गया है कि हे पुरूष! तुम ही तुम्हारे मित्र हो, फिर क्या मित्र खोज रहे हो। हमारी दुनिया में मित्र और शत्रु दोनों होते हैं। मित्रों के परस्पर छः व्यवहार हो सकते हैं। मित्र आपस में लेनदेन का व्यवहार करते हैं। मित्र आपस में एकदूसरे को गुप्त बात बता देते हैं। मित्र आपस में एकदूसरे के घर साथ में खाना खा लेते हैं। एक शब्द है कल्याण मित्र। एक मित्र दूसरे मित्र के कल्याण के बारे में परामर्श और सहयोग भी दे। साधु को भी निपुण सहायक मित्र न मिले तो अकेले रूप में साधना करो। कोई सहायक चित्त समाधि भी दे सकता है। यह एक बाह्‌‍य जगत में मित्रों का जगत चलता है। कई जगह मित्र न बनाने के लाभ भी हो सकते हैं।
मित्रता हो तो परिष्कृत उच्चस्तरीय मित्रता हो। अच्छा हित चिंतनमंथन करें तो उसका महत्व्ा हो सकता है। अध्यात्म की तो उंची बात है। क्यों किसी दूसरे को मित्र बनाओ,अपने आप को ही अपना मित्र बनाओ। अपनी आत्मा को तो हम अपना मित्र जरूर बनायें। आत्मा मित्र है और आत्मा अमित्र भी है। दुष्प्रवृति में लगी हमारी आत्मा अमित्र है। सद्‌‍प्रवृति मेंं लगी हुई आत्मा मित्र बन जाती है। निश्चय नय से अध्यात्म की उच्च बात है कि केवल आत्मा को ही मित्र बनाओ। दूसरे को मित्र बनाना व्यवहार नय और व्यवहार जगत की बात है। पुण्य प्रबल है तो कोई मार नहीं सकता। पाप प्रबल है तो कोई बचा नहीं सकता। दूसरों को मित्र बनायें या न बनायें पर हम आत्मा को अपना मित्र कैसे बनायें।
अगर जीवन में धर्म है तो आत्मा हमारी मित्र है। जीवन में अहिंसा, शांति, क्षमा का भाव और विनम्रता है तो आत्मा मित्र है अन्यथा आत्मा हमारी दुश्मन बन सकती है। मन में संतोष का भाव हो। हम अपनी आत्मा को अपना मित्र रखें या बनायें रखने का प्रयास करेें। उसके लिए हमें अध्यात्मधर्म की शरण में रहना होगा। अपने आप में रहने का अभ्यास करना होगा।
तुलसी पास गरीब के, को आवत को जात।
एक विचारो श्वास है, आत जात दिनरात।
श्वास प्रेक्षा, स्वाध्याय को मित्र बनाया जा सकता है। सबके साथ अच्छा व्यवहार हो। हो सके तो किसी का कल्याण करने या चित्त समाधि देने का प्रयास करें। हो सके उतना संवर की साधना करें। संवर और निर्जरा हमारे बड़े मित्र हो सकते हैं। साध्वीवर्याजी ने कहा कि हथोड़े चोट मारते है, अहरण सहन करती है। इसलिए जीवन में सहिष्णुता, सहनशक्ति का महत्व है। सहन करने वाला अपने अस्तित्व को बनाये रखता है। जो सहता है, वह महान बन जाता है। हमें महानता की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिये। सहनशीलता से क्षमा, सौहार्द, समता भी जीवन में आ सकती है। जो सहन करता है, वो पूज्य हो जाता है।
पूज्यवर की अभ्यर्थना में साध्वी निर्वाणश्रीजी (जिनका सन्‌‍ 2022 का चतुर्मास कांदिवली में हुआ था) ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। पूज्यवर के स्वागत में कांदिवली सभा अध्यक्ष पारसमल दूगड़, तेयुप अध्यक्ष नवनीत कच्छारा, तेरापंथ महिला मंडल से रचना हिरण्ा, रवि मालू, संगायिका मिनाक्षी भूतोड़िया, निर्मला बैद एवं सुशीला नाहटा ने अपने भाव व्यक्त किये। किशोर मंडल व कन्या मंडल की प्रस्तुतियां हुई। कांदिवली की तीन ज्ञानशालाओं की सामूहिक प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।