जीवन यापन के लिए आपसी संबंध मधुर हो ः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन यापन के लिए आपसी संबंध मधुर हो ः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

कांदिवली, 15 जून 2023
बोधि प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमणजी के कांदिवली में तीसरे दिन के प्रवास पर पूज्यवर की सन्निधि में बौद्ध धर्म के विपर्सनाचार्य राहुल बोधिजी का आगमन हुआ। परम पूज्य आचार्य प्रवर ने पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए फरमाया कि जीवन को चलाने के लिए, टिकाये रखने के लिए हमें अनेक प्रवृत्त्ाियां करनी पड़ती है। इस जीवन को टिकाने के लिए हवा, पानी, रोटी, कपड़ा आदि चाहिये। इधर आपसी संबंध भी चाहिये। साधु तो सबन्धातीत होते हैं, संयोग से मुक्त होते हैं। गृहस्थ जीवन से ऊपर उठ जाते हैं। साधु अणगार भिक्षु होते हैं। साधु को अनासक्त रहना चाहिये। गृहस्थ को भी संसार में रहते हुए जितना हो सके अनासक्त रहना चाहिये। भोजन के लिए तन नहीं है, तन के लिए भोजन है, ऐसा अनासक्त भाव रहे।
जैन दर्शन्ा में आत्मा शाश्वत है तो पर्यायपरिवर्तन को भी स्वीकार किया गया है। कोरी आत्मा है या कोरा शरीर है तो जीवन नहीं होता है। आत्मा का शरीर से अलग हो जाना निर्वाणमोक्ष है। अनासक्ति है तो बंधन नहीं होगा और होगा तो भी हल्का होगा। शास्त्र में मिट्टी के गीले गोले और सुखी मिट्टी के गोले से आसक्ति अनासक्ति को समझाया गया है। जैन धर्म और बौद्ध धर्म के ग्रथों में कितनेकितने धर्म के संदेश प्राप्त होते हैं। ज्ञान के साथ आचार व्यवहार में आये। संस्कार का पुल चाहिये। हमारे शास्त्रों की वाणी कल्याणी होती है। जैन और बौद्ध धर्म का निकट का संबन्ध रहा है। पुनर्जन्म अध्यात्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। हमारा पुनर्जन्म न हो, ऐसी साधना करें। अध्यात्म की साधना के सामने दूसरी चीजें छोटी पड़ती है। जो विषयों में आसक्त है, उसके कर्म चिपक जाते है। कमल पत्र की तरह संसार में रहते हुए भी अलिप्त रहें। भौतिक जगत शाश्वत शांति नहीं दिला सकता। अध्यात्म का मार्ग शाश्वत शांति दिलाने में सक्षम है। हम चिंतनमंथन कर आगे बढ़ने का प्रयास करें। राहुल बोधि जी से कई वर्षों बाद मिलना हुआ है। आप अध्यात्मधर्म का अच्छा काम करवाते रहें। दोनों की ओर से ग्रंथों का आदानप्रदान हुआ।
विपर्सनाचार्य राहुल बोधि जी ने कहा कि आचार्यश्री महाश्रमणजी का पैदल भ्रमण लोगों का सुखशांति पहुंचाने के लिये होता है। मैं उनसे मिलकर आनंद और ऊर्जा महसूस कर रहा हूं। तेरापंथ से हमारा मैत्री का संबंध है। हम मन, वचन और काया का संवर करें। मनुष्य जन्म महादुर्लभ होता है। इसको पाकर साधना के मार्ग पर आगे बढ़ें। संप्रदाय में फर्क हो सकता है पर उच्च धर्म सब में समान होते हैं। अच्छा बनना अपने हाथ में है। साध्वीवर्याजी ने कहा कि समय परिवर्तन होता है, जो दो प्रकार का होता है सहज परिवर्तन और पुरूषार्थ द्वारा परिवर्तन। अध्यात्मवादियों का चिंतन है कि प्रयत्न से व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन लाया जा सकता है। पूज्यवर के प्रवचन से कितने लोगों को दिशा मिल जाती है और उनकी दशा बदल जाती है।
पूज्यवर की अभिवंदना में मलाड महिला मंडल, कन्या मंडल, प्रेक्षा प्रशिक्षिका विमला दूगड़, अशोक नगर प्रेक्षाध्यान केन्द्र के प्रेक्षा साधकों ने गीत प्रस्तुत किये। तेरापंथ महिला मंडल, मुंबई की अध्यक्षा रचना हिरण, आचार्य महाश्रमण चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष मदनलाल तातेड़, डॉ. गौतम भंसाली आदि ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। विपर्सनाचार्य राहुल बोधि जी का व्यवस्था समिति द्वारा सम्मान किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमार जी ने किया।