आचार्यश्री तुलसी के अवदानों को प्रस्तुत करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान

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आचार्यश्री तुलसी के अवदानों को प्रस्तुत करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान

चंडीगढ,
मुनि विनयकुमारजी ने कहा- भारत देश वीर और वीरांगनाओं की जन्मभूमि है। इस धरती पर अनेक वीरों ने जन्म लेकर देश का गौरव बढ़ाया है। उसी क्रम में जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी का नाम भी बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। आचार्यश्री तुलसी ने पंजाब से कन्याकुमारी तक की पैदल यात्रा करते इंसान को इंसान बनाने का महनीय कार्य किया। उनके अवदानों को प्रस्तुत करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान होगा। पूर्ण स्वस्थावस्था में आपने आचार्य पद का विर्सजन कर अपने सक्षम उतराधिकारी युवाचार्य महाप्रज्ञ को आचार्य महाप्रज्ञ बनाकर श्लाघनीय कार्य किया, जो आज के इस पद-लिप्सित युग के लिए बोधपाठ बन गया।
आचार्यश्री तुलसी ने आचार्य बनने के बाद तेरापंथ समाज को नए-नए आयाम दिए, जिससे व्यक्ति-व्यक्ति का उद्धार हो। उन्होंने केवल जैन धर्म और तेरापंथ के लिए ही नहीं जन-जन के कल्याण का अभियान चलाया। उनके द्वारा चलाया गया अणुव्रत आंदोलन एवं प्रेक्षाध्यान जैन-अजैन सबके लिए वरदान साबित हुआ। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एवं प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने भी इसकी सहृदय से प्रशंसा की और उन्होंने इस आंदोलन को गति प्रदान की।
बाल विवाह, मृत्यु भोज, घूंघट प्रथा एवं महिलाओं की शिक्षा इसके मुख्य आयाम थे। आज समाज में जो महिलाओं का विकास नजर आ रहा है, उसमें गुरुदेवश्री तुलसी का दूरदर्शी चितन का सुश्रम बोल रहा है। आचार्यश्री तुलसी इस युग के क्रान्तिकारी आचार्यों में एक हैं। जैन धर्म को जन धर्म के रूप में व्यापकता प्रदान करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वे तेरापंथ धर्मसंघ के नौवें आचार्य थे। नैतिक क्रांति, मानसिक शांति और व्यक्तित्व निर्माण की पृष्ठभूमि पर आचार्यश्री ने तीन अभियान चलाए- अणुव्रत आन्दोलन, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान। ये तीनों ही अभियान अनुपम हैं, अपूर्व हैं और अपेक्षित हैं।
अणुव्रत जाति, लिंग, रंग, सम्प्रदाय आदि के भेदों से ऊपर उठकर मानव मात्र को चारित्रिक मूल्यों के संकट से उबारने का उपक्रम है। प्रेक्षाध्यान मानसिक एवं शारीरिक तनावों से ग्रसित मानवीय चेतना को शक्ति के पथ पर अग्रसर कर रहा है। जीवन विज्ञान के प्रयोग व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया है एवं शैक्षिक जगत की समस्याओं का समीचीन समाधान है। आचार्यश्री तुलसी का शासनकाल तेरापंथ का स्वर्ण युग था। कार्यक्रम में विजय शर्मा, राकेश तनेता, शांता चोपड़ा, कांता चोपड़ा आदि ने आचार्यश्री तुलसी की पुण्य तिथि पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी।