साधना की गहराई और चिंतन की ऊंचाई के संगम थे आचार्यश्री महाप्रज्ञ
बैंगलोर
कुमारा पार्क स्थित श्री महालक्ष्मी कल्याण भवन में आचार्य महाप्रज्ञ के 104 वें जन्मदिवस पर आयोजित धर्मसभा को संबोधित करते हुए मुनि हिमांशुकुमारजी ने कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञ का व्यक्तित्व साधना की गहराई और चिंतन की ऊंचाई का अद्भूत संगम था। आचार्यश्री महाप्रज्ञ के बहुआयामी व्यक्तित्व का परिचय देते हुए मुनिश्री ने बताया कि आचार्य महाप्रज्ञ अपने गुरु के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। उनका समर्पण भाव हमारे लिए प्रेरणा है। उन्होंने बताया कि तेरापंथ के दशम आचार्यश्री महाप्रज्ञ के गुरु आचार्य कालू एवं आचार्य तुलसी उनके गुणों से प्रसन्न थे। आधुनिक योगी आचार्य महाप्रज्ञ ने समय-समय पर युग को नई दृष्टि प्रदान की । मुनिश्री ने आचार्य महाप्रज्ञ के व्यक्तित्व के चार गुणों समर्पण, विनय, चरित्रनिष्ठा एवं स्वयं विकास की चर्चा की। उन्होंने बताया कि ये गुण हमें अपने भीतर के महाप्रज्ञ को जगाने का मार्गदर्शन देते हैं ।
इससे पूर्व मुनि हेमंतकुमारजी ने अपने संयोजकीय वक्तव्य में कहा कि आचार्य महाप्रज्ञ के महान व्यक्तित्व का बीज उन्हीं के महान लक्ष्य में छिपा है। वे सदैव एक ही लक्ष्य को अपने सामने रखते कि मुझे आगे बढ़ना है। मुनिश्री ने अपने सौभाग्य की सराहना करते हुए बताया कि मुझे आचार्य महाप्रज्ञ के करकमलों द्वारा दीक्षित होने का अवसर प्राप्त हुआ। उनकी शिक्षाओं को बहुउपयोगी बताते हुए उन्हें जीवन का अभिन्न अंग बनाने का आह्वान किया। कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए प्रज्ञा संगीत सुधा के गायकों ने युगयुग आभारी गीत को स्वर दिया। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष कमलसिंह दूगड़ ने गुरु उपदेश से प्राप्त शिक्षा के अनुसार जीवन जीने की बात कहते हुए अपनी श्रद्धा की अभिव्यक्ति दी।