जन्म से ही विशेष बौद्धिक बल और निर्भिकता के धनी थे आचार्य भीखणजी : आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के पावन सान्निध्य में आचार्यश्री भिक्षु के जन्म दिवस का ‘बोधि दिवस’ के रूप में हुआ भव्य आयोजन
1 जुलाई 2023, नंदनवन
तीर्थंकर समवसरण में तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु के 298वें जन्म दिवस एवं 266वें बोधि दिवस पर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने आचार्यश्री भिक्षु को भावांजलि अर्पित करते हुए फरमाया कि जो वीर पुरुष होते हैं, वे महान पथ के प्रति प्रणत हो जाते हैं, श्रद्धाशील हो समर्पित हो जाते हैं। जहां वास्तविक प्रणमन होता है वहां भीतर में श्रद्धा का दर्शन भी हो सकता है। श्रद्धा और समर्पण में गहरी अभिन्नता प्रतीत हो रही है। सिद्धांत या गुरु के प्रति श्रद्धा है तो फिर समर्पण भी हो जाता है।
दुनिया में जन्म तो हर आदमी लेता है, पर सारे व्यक्ति एक समान हो यह संभव नही है। गुणात्मकता का तारतम्य होता है। आज आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी और तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम अनुशास्ता परम पूज्य आचार्यश्री भिक्षु का जन्म दिवस है। शुक्ल त्रयोदशी आचार्यश्री भिक्षु के साथ निकटता से जुड़ी हुई है। उनका जन्म आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी को और महाप्रयाण भाद्रव शुक्ल त्रयोदशी को हुआ। इसी प्रकार उनका जन्म स्थली कंटालिया और महाप्रयाण भूमि सिरियारी में भी नैकट्य है। आचार्यश्री भिक्षु की जन्म त्रिशताब्दी का समय सामने आने वाला है।
आत्मा मेें अतीत के भी संस्कार होते हैं। आदमी वर्तमान के साथ पूर्व जन्म के कर्मों को भी साथ में लेकर आता है। इसलिए वर्तमान और अतीत को देखकर आदमी का आकलन हो सकता है। अतीत के आधार पर भविष्य भी बताया जा सकता है। आचार्यश्री भिक्षु का आज की तिथि को जन्म हुआ। जन्म से ही आचार्य भिक्षु में बौद्धिक बल और निर्भिकता रही थी। दीक्षा लेेने के बाद वे एक दीपते संत के रूप में थे।
गुरु किसी शिष्य का विशेष आकलन करते हैं तो शिष्य के लिए विशेष बात होती है। किसी संदर्भ में गुरु के हृदय में शिष्य समा जाये तो विशेष बात होती है। आचार्यश्री भिक्षु ऐसे ही साधु थे। उन्होंने अपने गुरु का विश्वास प्राप्त किया था। आचार्यश्री भिक्षु को राजनगर भेजने की पृष्ठभूमि में इस विश्वास का दर्शन किया जा सकता है। उन्हांेेने राजनगर जाकर गुरु की आज्ञा को क्रियान्वित करने का भी प्रयास किया। आचार्यश्री भिक्षु बुद्धिमान होने के साथ-साथ समझाने में बड़े कुशल थे। उन्होंने अपनी समझाने की कला से राजनगर के श्रावकों को प्रभावित किया। श्रावकों ने वंदना करना शुरु कर दिया।
व्यक्ति के जीवन में कई बार कोई कष्ट आता है, वह बड़ा हित करने के लिए भी हो सकता है, अच्छा रास्ता दिखाने वाला हो सकता है। आचार्यश्री भिक्षु को भी उस समय बुखार हो गया। उस कष्ट के कारण उनको सोचने का अवसर मिला। उन्होंने सोचा कि मेरा बुखार ठीक हो जाए तो मैं यथार्थ पर चलने का प्रयास करूंगा। मैं शास्त्रों का गहराई से अध्ययन करूंगा और निर्णय करूंगा। स्वामीजी को सत्य का बोध हुआ कि श्रावकों की बात सही है, शास्त्रों के अनुरूप है। उस बोध के आधार पर आचार्यश्री भिक्षु ने एक धर्मक्रांति की।
आज के दिन एक विशेष महान आत्मा प्रकट हुई थी, जो हमें हमारे आद्यप्रवर्तक के रूप में प्राप्त हुई थी। पूज्यवर ने ‘ज्योति का अवतार बाबा, ज्योति ले आया’ गीत की कुछ पंक्तियों के साथ आचार्यश्री भिक्षु के प्रति श्रद्धा प्रणति करते हुए फरमाया कि संत भीखणजी भी महान पथ के प्रति प्रणत हुए थे। स्वामीजी के ग्रंथों को पढ़ने से हमें ज्ञान प्राप्त हो सकता है। चिंतन भी प्राप्त हो सकता है। उनमें ज्ञान था, वे साहित्यकार व्यक्तित्व थे, बुद्धिमान और नेतृत्व करने वाले संत थे। बोधि दिवस के अवसर पर मुंबई वासियों द्वारा इक्कीस रंगी तपस्या में सहभागी तपस्वियों को आचार्य प्रवर ने प्रत्याख्यान करवाया एवं मंगलपाठ सुनाया। साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने फरमाया कि आचार्यश्री भिक्षु बचपन से ही औत्पतिकी बुद्धि के धनी थे। उनकी अंतर्दृष्टि भी विकसित थी। हमारे वर्तमान परम पूज्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के पास भी अंतर्दृष्टि है। आचार्य प्रवर के सान्निध्य में हम भी बोधि को प्राप्त करने और मोक्ष को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ते रहें।
भिक्षु जन्म दिवस व बोधि दिवस पर मुनि मोहजीतकुमारजी, मुनि योगेश कुमारजी, साध्वी निर्वाणश्रीजी, साध्वी स्तुतिप्रभाजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वीवृंद ने समूह गीत प्रस्तुत किया। नौवीं प्रतिमा की साधना में संलग्न डालचंद कोठारी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। उन्होंने स्वयं के द्वारा संकलित एक पुस्तक भी श्रीचरणों में अर्पित की। कार्यक्रम का कुशल संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।