सम्यक्व और चारित्र महान निधियां: आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन में चातुर्मास स्थापना से पूर्व हुआ दीक्षा समारोह का पावन आयोजन
29-06-23 नंदनवन
चातुर्मासिक प्रवेश के दूसरे दिन संयम के सुमेरु, संयम प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा दीक्षा प्रदान का पावन कार्यक्रम। दो समणियों का श्रेणी आरोहण, एक मुमुक्षुु भाई विपुल की दीक्षा एवं चार मुमुक्षु बहनों की समणी दीक्षा का आयोजन।
तीर्थंकर समवसरण में तीर्थंकर प्रतिनिधि ने सर्वप्रथम ध्यान का प्रयोग करवाया। पावन प्रेरणा प्रदान कराते हुए परम पावन ने फरमाया कि हमारी आत्मा, प्रत्येक आत्मा जो संसारी अवस्था में है, अनन्त काल से संसार में परिभ्रमण कर रही है। इस अनन्त काल की यात्रा में कई जीव ऐसे हैं, जिनकी यात्रा का कभी अन्त नहीं होगा। जैसे अभव्य जीवों की यात्रा का अन्त होगा ही नहीं। ऐसे भी अनन्त जीव हैं, जिनकी संसार परिभ्रमण की यात्रा का प्रारम्भ तो नहीं है पर समाप्त हो जाती है।
इस संसार परिभ्रमण से मुक्ति पाने का एक उपाय है- सम्यक्त्वी बन जाना, दूसरा उपाय है चारित्री बन जाना। ये दो महान निधियां होती हैं- सम्यक्त्व और चारित्र। सम्यक्त्व जैसा कोई बड़ा रत्न, मित्र या बन्धु नहीं होता। क्षायिक सम्यक्त्व की दिशा में हमारी गति हो। जो तीर्थंकरों द्वारा प्रवर्तित है, वही सत्य है, उसके प्रति मेरी श्रद्धा है, समर्पण है। सच्चाई और अच्छाई जहां भी मिले, उसका सम्मान करें, उसे ग्रहण करने का प्रयास करें। हमारे कषाय मुक्त हों, तत्त्व बोध प्राप्त करने का प्रयास और यथार्थ श्रद्धा हमारे सम्यक्त्व को पुष्ट करने वाली होती है। चारित्र के लिए सम्यक्त्व जरूरी है।
दीक्षा के संदर्भ में आचार्य प्रवर ने फरमाया कि हमारे प्रवेश के दूसरे दिन ही दीक्षा का आयोजन हो रहा है, जो एक आध्यात्मिक मंगल है। आज के दीक्षा समारोह में जो साधु-साध्वियां व समणियां बनने जा रही हैं। दीक्षा का अवसर जीवन में आना बहुत बड़े भाग्य की बात है। सम्यक्त्व रत्न अमूल्य है। इसको पाने वाला सबसे बड़ा धनवान है।
पूज्यवर ने मुमुक्षुओं के परिवारजन से लिखित आज्ञा के बाद मौखिक आज्ञा प्राप्त की एवं सभी दीक्षार्थियों को प्रेरणा प्रदान करवायी। दीक्षार्थियों की मानसिक दृढ़ता का अंतिम परीक्षण करते हुए उनकी सहमति प्राप्त की।
पूज्यवर ने भगवान महावीर को नमस्कार करते हुए आचार्यश्री भिक्षु व उनकी उत्तरवर्ती आचार्य परम्परा को वन्दन करते हुए गुरुदेवश्री तुलसी व आचार्यश्री महाप्रज्ञजी को श्रद्धा से नमन किया। पूज्यवर ने नमस्कार महामंत्र के उच्चारण के साथ सामायिक पाठ से साधु-साध्वी दीक्षा लेने वालों को सर्व सावद्य योग का आजीवन तीन करण तीन योग से त्याग करवाया। समणी दीक्षा वालों को असत्य, अब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का निर्धारित सावध योग का तीन करण, तीन योग से आजीवन त्याग करवाया। सातों दीक्षार्थियों को आर्षवाणी से अतीत की आलोचना करवायी। दीक्षार्थियों ने कृतज्ञता ज्ञापन के साथ पूज्यवर को सविनय वंदना की।
पूज्यवर ने नव दीक्षित मुनि का एवं साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने नवदीक्षित साध्वियों का केश लोच संस्कार किया। पूज्यवर ने नवदीक्षित मुनि को अहिंसा का प्रतीक रजोहरण एवं साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने नवदीक्षित साध्वियों को रजोहरण प्रदान करवाया। नवदीक्षितों का नामकरण संस्कार कराते हुए पूज्यवर ने नये नाम इस प्रकार प्रदान किये-
मुमुक्षु विपुल- मुनि विपुलकुमार, समणी विनीतप्रज्ञा - साध्वी वैराग्यप्रभा, समणी जगतप्रज्ञा - साध्वी समत्वप्रभा, मुमुक्षु समता - समणी समत्वप्रज्ञा, मुमुक्षु आयुषी - समणी आर्जवप्रज्ञा, मुमुक्षु अंकिता - समणी अभयप्रज्ञा और मुमुक्षुु संजना - समणी स्वातिप्रज्ञा।
श्रावक-श्राविका समाज ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों को वन्दना की। समणीजी को वन्दामि नमंसामि किया। पूज्यवर ने नवदीक्षित साधु-साध्वियों व समणियों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि अब यत्नापूर्वक संयम का पालन करने का प्रयास हो। चलने, बोलने, उठने, बैठने, खाने-पीने, सोने अर्थात् सभी कार्यों में संयम का प्रयास रहे। पूज्यवर ने नवदीक्षित साध्वियों को साध्वीप्रमुखाजी की सन्निधि में, नवदीक्षित मुनि को मुनि दिनेशकुमारजी के संरक्षण व नवदीक्षित समणियों को साध्वीवर्याजी के संरक्षण में रहने की आज्ञा देते हुए उनके नवजीवन के आध्यात्मिक विकास की प्रेरणा प्रदान की। पूज्यवर ने मुमुक्षु कल्प को साधु प्रतिक्रमण का आदेश फरमाया। पारमार्थिक संस्था प्रवेश पाने वाली चार नई मुमुक्षु बहनों को मंगल पाठ फरमाया। पूज्यवर ने 21 रंगी तपस्या की प्रेरणा प्रदान की।
साध्वी प्रमुखाश्रीजी ने फरमाया कि अपनी आत्मा को जीतने वाला परम विजयी होता है। आज मुमुक्षु भाई बहन व समणियां गुरु चरणों में संयम का पथ स्वीकार करने के लिये उपस्थित हैं। जब व्यक्ति के मन मे वैराग्य का भाव आ जाये, प्रव्रज्या ग्रहण कर लेनी चाहिये। संसारपक्ष से मुंबई से संबद्ध मुनि जयेशकुमारजी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। साध्वी सुषमाकुमारीजी ने 21 रंगी तपस्या की प्रेरणा दी। साध्वी मधुस्मिताजी एवं उनके सिंघाड़े ने भावों व गीत से अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। मुमुक्षु मानवी व भाविका ने मुमुक्षुओं का परिचय दिया। समणी अक्षयप्रज्ञाजी ने श्रेणी आरोहण करने वाली समणियों का परिचय दिया। मुमुक्षुओं एवं श्रेणी आरोहण करने वाली समणियों ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। आज्ञापत्र का वाचन पा.शि.सं. के अध्यक्ष बजरंग जैन ने किया। मुमुक्षुओं के पारिवारिकजनों ने लिखित आज्ञा पत्र पूज्यवर को उपहृत किये। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेशकुमारजी ने किया।