जीवन में कठिनाई आए तो समता रखें: आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन (मुंबई), 9 जुलाई, 2023
आगम वेत्ता परम पावन आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती आगम के सातवें शतक की व्याख्या करते हुए फरमाया कि धार्मिक साहित्य में स्वर्ग और नरक की चर्चा प्राप्त होती है। यानी नरक गति और देव गति। सारे संसारी चार गतियों में भ्रमण करते हैं। जीव के मूल दो भेद किए गए हैं-सिद्ध और संसारी। सिद्ध जीव जो परमात्मा बन गए हैं, वे जन्म-मरण की परंपरा से मुक्त हो गए हैं। संसारी जीवों का जन्म-मरण चलता रहता है। ऐसे जीव भी हैं, जो वनस्पति-काय में ही हैं। वे मनुष्य, तिर्यंच या देव गति में कभी गए ही नहीं हैं।
नारकीय गति के जीव पाप कर नरक में जाते हैं। नरक में दस प्रकार की वेदना होती है। सुख-संवेदन तो बहुत ही कम होता है। ये वेदनाएँ हैं-सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास, खुजली, ज्वर, दाद, भय, पारस्परिक वेदना भोगते हैं। मनुष्य जीवन में भी अनेक कष्ट आ सकते हैं। जीवन में अगर कठिनाईयाँ आ जाएँ तो समता से सहना चाहिए। गृहस्थ जीवन में अनेक कठिनाइयाँ आ सकती हैं। साधु उन कठिनाइयों से मुक्त रहते हैं। कठिनाई की स्थिति में भी मानसिक संतुलन ठीक रहे। सकारात्मक चिंतन करें। हम हमारी समता को खंडित न करें। बीमारी के साथ भी मैत्री रहे। चित्त समाधि बनी रहे। समस्या और दुःख एक नहीं है। वेदना को निर्जरा से शांत करें।
अध्यात्म और धर्म का चिंतन आदमी को शांति प्रदान कर सकता है। शरीर तो नश्वर है। आगे की तैयारी के रूप में आत्मा का कल्याण करने का प्रयास करें। जप-कायोत्सर्ग का प्रयोग करें। अध्यात्म साधना सर्व दुःखों को समाप्त करने वाली है। हम जीवन में शांति व समता रखने का प्रयास करें। पूज्यप्रवर ने ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों को मंत्र दीक्षा प्रदान कराते हुए फरमाया कि मंत्र दीक्षा सुंदर उपक्रम है। नवकार मंत्र को कंठ में धारण कर लें। नवकार मंत्र धारण करने वाला जैन हो सकता है। नवकार मंत्र दिनचर्या में आ जाए। बाल्यावस्था में अच्छे संस्कार आ जाएँ। ज्ञानशाला से अच्छे संस्कार और प्रारंभिक ज्ञान दिया जा सकता है। पूज्यप्रवर ने मंत्र दीक्षा ग्रहण करवाई। मंत्र दीक्षा का आयोजन अभातेयुप के निर्देशन में किया जाता है। मंत्र दीक्षा के नियमों को भी समझाया और प्रेरणाएँ भी प्रदान की।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरुकुलवास में बच्चों को संस्कारित बनाया जाता है। वर्तमान में ज्ञानशाला के माध्यम से बच्चों को संस्कारित बनाया जाता है। बच्चों को ठम्ैज् के चार अक्षरों से सीख लेकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रेरित किया। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि दो शब्द हैं-सत्य और भ्रम। दुनिया में सत्य कम और भ्रम अधिक है। हिंसा अनेक प्रकार की हो सकती है, मुख्य हिंसा है-क्रोधजा, मानजा, मायाजा और लाभजा। हम हिंसा से पाप कर्म का बंध कर सकते हैं। सत्य को जीएँ, जागरूकता लाएँ। पूज्यप्रवर ने महाप्राण ध्वनि का प्रयोग करवाया। 21 रंगी से संबंधित एवं अन्य तपस्वियों को तपस्या का प्रत्याख्यान करवाया। मुनि मोहजीत कुमार जी ने नौ की तपस्या के पूज्यप्रवर से प्रत्याख्यान लिए।
आम व्यवस्था समिति से अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ ने कार्यक्रम ज्तंदेवितउ के बारे में जानकारी दी। यह आध्यात्मिक कार्यक्रम है। दिलीप सरावगी ने भी इस विषय पर अनेक कार्यशालाएँ करने की जानकारी दी। डॉ0 सौरभ जैन ने Spritual Sumnit के बारे में बताया। पूज्यप्रवर ने Spritual Sumnit पर आशीर्वचन फरमाया कि हमें असद् से सद् की ओर ट्रांसफोर्मेशन करना है। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान से ट्रांसफोर्मेशन घटित हो सकता है। ये कॉन्फ्रेंस अच्छा प्रभाव देने वाली हो।
ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं एवं ज्ञानार्थियों ने मंत्र दीक्षा गीत का सुमधुर संगान किया। आंचलिक संयोजिका अनिता परमार ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। ज्ञानशाला द्वारा नवकार मंत्र, नुक्कड़ कार्यक्रम की प्रस्तुति दी गई।
प्रेक्षा प्रशिक्षक उपासक पारसमल दुगड़ ने तपस्या कैसे सातापूर्वक व सुविधा से हो, के प्रयोग समझाए व प्रयोग करवाए।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।