जैसा कर्म होगा, वैसा फल मिलेगा: आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन (मुंबई), 11 जुलाई, 2023
अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि कालोदयी अणगार ने भगवान के पास आकर वंदन नमस्कार कर प्रश्न पूछा कि क्या पाप कर्म पाप युक्त फल देने वाले होते हैं। भगवनµहाँ वे ऐसे होते हैं। पाप कर्म में ऐसी शक्ति होती है कि वे समय आने पर पाप रूप में फल भी देते हैं। प्रश्न पर प्रश्न होने से उसे उदाहरण-दृष्टांत के द्वारा उस बात को स्पष्ट किया जाता है। कालोदयी-भगवन! यह कैसे हो सकता है।
भगवान ने कहा कि अठारह प्रकार के व्यंजनों का भोजन हंडिया में पका हुआ है, पर किसी ने उसमें विष मिला दिया। विष मिश्रित भोजन आनंद से खा रहा है। स्वादिष्ट भोजन का रस ले रहा है पर विष अपना असर दिखा रहा है, भयंकर परिणाम आए तो मौत भी आ सकती है। इसी प्रकार आदमी जब पाप करता है, तब तो उसे आनंद आ रहा है, पर जब उन कर्मों का फल भोगना पड़ता है, तो भयंकर दुःख भोगना पड़ता है।
कालोदयी-भगवन जीवों के कल्याण कर्म होते हैं, भगवनµहाँ होते हैं। भोजन जो अठारह प्रकार के व्यंजनों से निर्मित हैं, उसमें औषधि मिला दी। भोजन के स्वाद में कड़वापन आ गया। आदमी भोजन कर रहा है, कड़वा स्वाद होते हुए भी औषधि मिली होने से उसका परिणाम अच्छा आता है। धर्म की साधना, त्याग करने से थोड़ी कठिनाई हो सकती है, पर उसका परिणाम अच्छा आता है। बुरे कर्मों का बुरा फल और अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है। इसलिए मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म कर पुण्य फल संचित करने का प्रयास करना चाहिए।
जो आत्मा के लिए हितकर होता है, वह शरीर के लिए कुछ कष्टकर हो सकता है। जो शरीर के लिए हितकर है, वह आत्मा के लिए कष्टकर हो सकता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि पूर्व कृत पुण्य कर्म का वर्तमान में सुख मिल सकता है। कल्याण कर्म विपाक युक्त होते हैं। परम पावन ने कालू यशोविलास का सुंदर विवेचन करते हुए पचपदरा में टालोकरों के प्रसंगों को विस्तार से समझाया। पूज्यप्रवर ने 21 रंगी तपस्या से संबंधित तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए। उपासक श्रेणी के शिविरार्थियों को अच्छा प्रशिक्षण मिलता रहे। मुनि दिनेश कुमार जी ने सवा कोटि जप अनुष्ठान के बारे में सूचना दी। मुनि राजकुमार जी ने 21 रंगी तपस्या की गीत से प्रेरणा दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।