साधना व आत्मकल्याण के लिए नव तत्त्व को जानें : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

साधना व आत्मकल्याण के लिए नव तत्त्व को जानें : आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन (मुंबई), 10 जुलाई, 2023
अध्यात्म साधना के सजग प्रहरी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र के सातवें शतक के दशम उद्देशक की व्याख्या करते हुए फरमाया कि भगवान महावीर राजगृह नगर में विराजमान थे। गुणशीलक नामक चैत्य पृथ्वी शिला पटक पर विराजमान थे। वहाँ अन्य संप्रदाय के लोग भगवान के परिपार्श्व में रहा करते थे और आपस में बैठकर बातें करते थे।
उन लोगों में भगवान के सिद्धांत के बारे में चर्चा चल रही थी कि ज्ञात पुत्र धर्मास्तिकाय आदि पाँच अस्तिकाय में चार अजीव बताते हैं। एक पुद्गल को मूर्त बताते हैं। इधर उन लोगों में चर्चा चल रही थी, उधर गौतम स्वामी का वहाँ गोचरी करने आना हुआ। उन लोगों ने सोचा कि इनसे इस बारे में पूछते हैं। वे बोले कि आपके धर्माचार्य पाँच अस्तिकाय बताते हैं। चार अजीव हैं, चार अमूर्त हैं, ये क्या बात है।
गौतम स्वामी बोलेµहम तो सर्व अस्ति को अस्तिकाय मानते हैं। सर्व नास्ति को नास्तिकाय बताते हैं। वहाँ से गौतम स्वामी ने भगवान महावीर के पास आकर उन्हें सारी घटना बताई। दूसरे दिन वे अन्य संप्रदाय वाले भगवान के पास आ गए। भगवान ने प्रवचन में कालोदयी को संबोधित करते हुए वह बात शुरू कर दी।
कालोदयी ने पूछा कि क्या धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय, आकाशस्तिकाय में जीव ठहर सकता है क्या? भगवान ने कहा कि पुद्गलास्तिकाय पर ही जीव ठहर सकता है और जीवास्तिकाय में ही कर्म ठहर सकता है। कालोदयी भगवान से सिद्धांत की बात उसने सुनी और धर्म की बात भगवान से सुनकर प्रभु के पास दीक्षित हो गया।
कुछ समय पश्चात भगवान वहाँ से विहार कर देते हैं। पंचास्तिकाय की बात भगवती में आई है। छः द्रव्यों में पंचास्तिकाय के सिवाय काल भी है। नौ तत्त्व और पंचास्तिकाय अलग-अलग क्यों बताया गया है। यह अनेक दृष्टिकोण से हो सकता है। वहाँ पर पंचास्तिकाय या छः द्रव्य हैं, वह लोक है। जो हमें दिखाई दे रहा है वह पुद्गलास्तिकाय का प्रपंच है। साधना व आत्म कल्याण की बात बताई है, तो नव तत्त्व को जानो। यह जैन दर्शन का एक उल्लेख यहाँ बताया गया है।
पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का विवेचन करते हुए पूज्य कालूगणी के मारवाड़-मरुधर यात्रा के प्रसंग को समझाया। पूज्यप्रवर ने 21 रंगी में साधनारत तपस्वियों को प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।