सब जीव एक समान: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

सब जीव एक समान: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन (मुंबई), 6 जुलाई, 2023
संबोध प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने चातुर्मासिक प्रवचन में भगवती सूत्र के 7वें शतक के आठवें उद्देशक की व्याख्या करते हुए फरमाया कि जैन दर्शन में आत्मवाद का सिद्धांत है। आत्मा के बारे में कहा जाता है कि आत्माएँ अनंत हैं। दुनिया में जीव भरे पड़े हैं। लोकाकाश में जीव हैं। प्रत्येक जीव के असंख्य प्रदेश होते हैं। संपूर्ण लोक में एक ही आत्मा के प्रदेश फैल सकते हैं। लोकाकाश के जितने देश हैं, उतने ही प्रदेश प्रत्येक आत्मा के होते हैं।
चार चीजें समान हैंµधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, लोकाकाश और एक जीव। हाथी और कुंथु दोनों के जीव एक समान हैं। एक दीपक के प्रकाश के उदाहरण से समझाया कि प्रकाश को जितना अवकाश मिलेगा उतना फैल जाएगा। सारी आत्माओं के समान प्रदेश हैं, जैसा शरीर मिलता है, वैसे फैल जाते हैं। एडजस्टमेंट की शिक्षा हम अपनी ही आत्मा से ले सकते हैं। जैसी स्थिति है, उसमें समता रखो। आत्म प्रदेशों से सब जीवों में समानता है। केवल समुद्धात के समय आत्मा पूरे लोक में फैल जाती है। आत्मा में फैलने और संकुचित होने की समान शक्ति होती है। पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का सुंदर विवेचन भी करवाया।
बड़ी दीक्षा का आयोजन
29 जून को हुई मुनि दीक्षा में दीक्षित नव साधु-साध्वियों को पूज्यप्रवर ने पाँच महाव्रत और एक रात्रि भोजन विरमण व्रत-छेदोपस्थापनीय चारित्र को समझाकर स्वीकार करवाया। छेदोपस्थापनीय चारित्र में स्थापित करवाया। नई समणियों को भी पूज्यप्रवर ने, मृषावाद, अदतादान, मैथुन का आजीवन त्याग करवाया। अहिंसा में भी जागरूक रहने की प्रेरणा दिलाई। परिग्रह से भी बचने का प्रयास करने की प्रेरणा दी। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि अगर आत्मा पाप से कलुषित है, तो वह व्यक्ति जीवन में अच्छाइयाँ नहीं प्राप्त कर सकता। अच्छे मार्ग पर नहीं चल सकता। शुद्धि के लिए पाप का शोधन करना होगा। पाप को जानना होगा। जिसे सम्यक् दर्शन की आँख प्राप्त हो जाती है, उसे करणीय-अकरणीय का ज्ञान हो सकता है।
नव दीक्षित मुनि विपुल कुमार जी, साध्वी समत्वप्रभा जी, साध्वी वैराग्यप्रभा जी ने पूज्यप्रवर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। अपने सात दिनों के अनुभव बताए। समणीवृंद ने भी प्रस्तुति दी। पूज्यप्रवर ने 21 रंगी तप से संबंधित तपस्वियों एवं अन्य तपस्वियों को तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।