संवेदी संज्ञाओं से बचने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

संवेदी संज्ञाओं से बचने का प्रयास करें: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन (मुंबई), 8 जुलाई, 2023
आगम ज्ञान प्रदाता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र के सातवें शतक के आठवें उद्देशक की व्याख्या करते हुए फरमाया कि प्रश्न किया गया है कि भंते! कितनी संज्ञाएँ हैं। उत्तर दिया गया-गौतम! दस संज्ञाएँ हैं- आहार-भय-क्रोध आदि। जैन तत्त्व ज्ञान के मनोविज्ञान से जुड़ा संज्ञा शब्द है। इस शब्द का प्रयोग भीतर की वृत्तियों के संदर्भ में किया गया है।
हमारे भीतर अनेक वृत्तियाँ होती हैं। हमारे कषाय संज्ञाएँ हैं। ये दो प्रकार के हो सकते हैं-सुसुप्त अवस्था और जागृत अवस्था। निमित्त मिलने पर सुसुप्तवृत्ति जागृत हो जाती है, उत्तेजित हो जाती है। साधना की उत्कृष्ट अवस्था में तो संज्ञाएँ समाप्त हो जाती हैं। ये संज्ञाएँ कर्मों से संबंधित होती हैं।
आहार संज्ञा खाने की वृत्ति है। जीभ के स्वाद से नहीं खाना है। स्वास्थ्य और साधना के लिए खाना है। भोजन के लिए तन नहीं है। भय संज्ञा यानी डर की प्रवृत्ति। डर से आदमी झूठ बोल सकता है। दृष्टि उघांत सी हो जाती है। तीसरी है-परिग्रह संज्ञा। आसक्ति की भावना से संग्रह की चेतना। क्रोध संज्ञा मोहनीय कर्म से उदय होती है। क्रोध में व्यक्ति लाल-पीला हो जाता है।
मान संज्ञा यानी अहंकार की भावना। माया संज्ञा से आदमी छिपाने का कार्य करता है। लोभ संज्ञा से भी संग्रह की भावना रहती है। ये आठ संज्ञाएँ संवेद के रूप में हैं, इन्हें कमजोर करने का प्रयास करना चाहिए।
लोक संज्ञा और ओघ संज्ञा ज्ञान से जुड़ी संज्ञाएँ हैं। ये ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होती है। ये ज्ञानात्मक संज्ञाएँ हैं। पंचेन्द्रिय प्राणियों में तो स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। पर विकलेन्द्रिय व स्थावर काय में भी वर्तमान के वैज्ञानिक संशोधन से देखी गई है।
संज्ञाएँ बहुत गहरी होती है, पर बाहर में आ जाती है। योग रूप में संज्ञाओं से बचने का प्रयास करें। हम साधना और अभ्यास के द्वारा इनको प्रतनू बनाने का प्रयास करें। गृहस्थ जीवन में भी श्रावक बहुत ऊँचा हो सकता है। गृहस्थ परिग्रह संज्ञा से बचने के लिए अनैतिकता से बचने का प्रयास करें। जो अर्थार्जन नैतिकता से किया है, उसका दुरुपयोग न हो। अनासक्त रहे। उपासक श्रेणी तो संज्ञाओं के प्रति और अधिक जागृत रहे।
पूज्यप्रवर ने कालू यशोविलास का सुमधुर सुंदर विवेचन करते हुए पूज्य कालूगणी के अनुशासन के प्रसंगों को समझाया। 21 रंगी तपस्या से संबंधित तपस्वियों को प्रत्याख्यान करवाए। उपासक प्रशिक्षण शिविर के शिविरार्थियों को परम पावन ने उपसंपदाएँ ग्रहण करवाई।
मुनि अनेकांत कुमार जी ने 21 रंगी तपस्या से जुड़ने की प्रेरणा दी। मुनि दिनेश कुमार जी ने संचालन किया।