साधना से मोहनीय कर्मों को क्षीण करें: आचार्यश्री महाश्रमण

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साधना से मोहनीय कर्मों को क्षीण करें: आचार्यश्री महाश्रमण

नंदनवन, मुंबई, 13 जुलाई, 2023
चिर युवा मनीषी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने भगवती सूत्र के आठवें शतक की विवेचना करते हुए फरमाया कि दो शब्द हैं-छद्मस्थ और केवली। तत्त्व-ज्ञान में ये दो शब्द प्रसिद्ध हैं। इनका संदर्भ ज्ञान के साथ जुड़ा हुआ है। जिसका ज्ञानावरणीय कर्म क्षीण नहीं हुआ है, वह छद्मस्थ है। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होने से वह वीतराग है। केवलज्ञान दोनों में भेद रेखा डालता है।
छद्मस्थ व्यक्ति चार प्रकार के होते हैं-(1) जिनके पास मति, श्रुत ज्ञान है, (2) जिनके पास अवधि ज्ञान भी हो गया, (3) जिनके पास अवधि ज्ञान तो नहीं पर मनः पर्यव ज्ञान हो गया, (4) जिनके पास मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यव ज्ञान है। दस चीजें ऐसी हैं, जिनको छद्मस्थ सर्वभावेण नहीं जान सकता- धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीर मुक्त जीवन सिद्ध भगवान, परमाणु पुद्गल, शब्दः साक्षात रूप से, गंध साक्षात् रूप से, वायु साक्षात रूप से, यह जीव जिन होगा या नहीं, यह जीव सर्वदुखों का अंत करेगा या नहीं अथवा भवी है या अभवी। केवली इन चीजों को जान सकते हैं, पर छद्मस्थ साधारण आदमी नहीं।
केवलज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय से प्राप्त होता है, पर उसके लिए उत्कृष्ट साधना चाहिए, पहले मोहनीय कर्म का क्षय करो। वीतराग बने केवल केवलज्ञान की पात्रता है ही नहीं। वीतरागता आते ही ज्ञानावरणीय कर्म क्षीण करना आसान हो जाता है। आठ कर्मों में एक मोहनीय कर्म ही ऐसा है कि इसके योग से आत्मा के पाप कर्म का बंध होता है। राग और द्वेष कर्म के बीज हैं। राग-द्वेष और मोहनीय कर्म एक-दूसरे में समाविष्ट हो जाते हैं।
मोहनीय कर्म की 28 प्रकृतियाँ होती हैं, इनकी क्षीणता करना वीरता का काम है। क्षायिक सम्यक्त्व के लिए दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय की प्रवृत्तियों को क्षीण करना होता है। हमें मोहनीय कर्म को क्षीण करने के लिए साधना करनी चाहिए। इसके लिए चार कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ कम करना चाहिए।
गृहस्थ उम्र के साथ टर्निंग पॉइंट लें। अध्यात्म की साधना में अधिक समय लगाएँ। आगे की तैयारी भी करें। समाज के लिए धार्मिक आध्यात्मिक सेवा के लिए समय निकालें। जीवन को हम कई भागों में बाँट सकते हैं-बचपन, जवानी, 65-70 की अवस्था और 80-85 की अवस्था। आचार्यों की सेवा-दर्शन करने से मोहनीय कर्म प्रतनूं पड़ सकता है। परम पावन ने कालू यशोविलास की सुमधुर व्याख्या करते हुए पूज्य कालूगणी के जोधपुर चतुर्मास प्रवेश के समय के दृश्यों का साक्षात्कार करवाया।
व्यवस्था समिति द्वारा पावस प्रवास पुस्तिका एवं चतुर्मास की फड़द पूज्यप्रवर को समर्पित की गई। पूज्यप्रवर ने आशीर्वचन फरमाया। 21 रंगी तपस्या के संभागी नए-पुराने को पूज्यप्रवर ने प्रत्याख्यान करवाए। अन्य तपस्वियों ने भी प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।