यह सबके लिए त्राण और शरण बनें : आचार्यश्री महाश्रमण
धर्मसंघ का महत्त्वपूर्ण आयाम है - उपासक श्रेणी
नंदनवन (मुंबई), 17 जुलाई, 2023
महातपस्वी, महामनस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित त्रिदिवसीय उपासक सेमिनार के समापन दिवस पर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने फरमाया कि भारतीय संस्कृति त्याग की संस्कृति है। यहाँ दान और दया को धर्म का महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। जैन दर्शन में भी दान और दया को अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। दान हर किसी को हर कहीं, दिया नहीं जा सकता। दान के संबंध में तीन बातों का विशेष उल्लेख जैन ग्रंथों-आगमों में किया गया है, वे हैं-चित्त, वित्त और पात्र। चित्त का मतलब है-दान देने वाला शुद्ध भावों से दान दे। वित्त से तात्पर्य है-जिस वस्तु का दान देना है वह वस्तु शुद्ध हो। पात्र का अर्थ है दान ग्रहण करने वाला व्यक्ति सुपात्र हो। जैन दर्शन में सुपात्र उसे कहा गया है, जिसने संयम की आराधना स्वीकार की हो-जो पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति का पालन करने वाला हो अर्थात् शुद्ध साधु हो। सुपात्र व्यक्ति अर्थात् चरित्र आत्मा को शुद्ध वस्तु का दान यदि शुद्ध भावों के साथ दिया गया हो तो वह अवश्य फलदायी होता है। उससे कर्मों की निर्जरा होती है और पुण्य का बंध होता है।
उपासक सेमिनार में उपस्थित संभागियों को प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए आचार्यप्रवर ने फरमाया कि उपासक श्रेणी तेरापंथ धर्मसंघ का एक महत्त्वपूर्ण आयाम है। उपासक श्रेणी, शिविर और सेमिनार एक समवाय सा हो गया है। शिविर और सेमिनार के माध्यम से उपासकों का अच्छा स्वाध्याय हो जाता है। ये प्रशिक्षण के माध्यम से, आध्यात्मिक प्रशिक्षण से संस्कार सिंचन और संवर्धन भी हो सकता है। तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में संचालित यह आयाम गुणवत्तायुक्त है। इससे मानो संघ के रथ को गति मिल रही है। यह बहुत संतोष की बात है। पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने उपासकों की 100 की संख्या हो ऐसा सपना संजोया था। वर्तमान में पढ़े-लिखे लोग-डॉक्टर, इंजीनियर, सी0ए0 आदि भी इस श्रेणी से जुड़ रहे हैं। यह सब बातें उज्ज्वल भविष्य की द्योतक हैं। उपासक-उपासिकाएँ अपने लक्ष्य में आगे बढ़ते रहें, यह श्रेणी सबके लिए त्राण, शरण बनें और कल्याणकारी सिद्ध हों यही शुभाशंषा है।
पूज्यप्रवर ने ‘शांतिलाल बोराणा (बैंगलोर) स्मृति ग्रंथ’ का विमोचन किया। परिवारजनों ने ग्रंथ पूज्यप्रवर के चरणों में समर्पित किया। पूज्यप्रवर ने ‘कालूयशोविलास’ पर मारवाड़ी भाषा में रोचक व्याख्यान दिया। वरिष्ठ उपासक सुमेरमल सुराणा ने अष्टमाचार्य पूज्य कालूगणी के जीवन से जुड़ी घटनाओं की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में उपासक गीत की संुदर प्रस्तुति हुई। सभी उपासक- उपासिकाओं ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर उपासक गीत की आह्लादपूर्ण एवं प्रभावी संगान किया। शिविर व्यवस्थापक उपासक जयंतीलाल सुराणा ने अपने श्रद्धासिक्त भावों की गुरुचरणों में प्रस्तुति दी। उपासक श्रेणी के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेश कुमार जी ने उपासक श्रेणी की विकास यात्रा का आधुनिक संदर्भ के साथ विश्लेषण किया।