संथारा आत्मा की उज्ज्वलता का सर्वोत्तम आधार
भीलवाड़ा।
मुनि पारस कुमार जी के सान्निध्य में संथारा क्यों और क्या विषय पर कार्यशाला का आयोजन जयाचार्य भवन में किया गया। मुनि सिद्धप्रज्ञ जी ने कहा कि संथारा अर्थात जीते जी मृत्यु के दर्शन करने की प्रक्रिया है। संथारे से एक ओर आत्मा की निर्मलता बढ़ती है, वहीं दूसरी ओर धर्म शासन की प्रभावना बढ़ती है। संथारा आत्महत्या नहीं, अपितु आत्मा से परमात्मा बनने का सर्वोत्तम साधन है। संथारा दो प्रकार का होता है। संथारी एवं याव्वजीवन। साधक को जब यह लगे कि शरीर साथ नहीं दे रहा है तो अब मैं क्यों शरीर का साथ दूँ इसी भावना की परिणीति है संथारा।
मुनि पारस कुमार जी ने कहा कि जैन धर्म में संथारा का बहुत बड़ा महत्त्व है। संथारा करना बहुत महान एवं कठिन काम है। यह श्रावक एवं साधुओं का अंतिम मनोरथ है। हमें हरदम जागरूक रहना चाहिए। अंत में संथारा साधक मुनि शांति प्रिय के संथारे के 15वें दिन उपासक विनोद बोरदिया ने संथारा साधक मुनिश्री का परिचय दिया।कार्यशाला में सभा अध्यक्ष जसराज चोरड़िया, भिक्षु सेवा संस्थान मंत्री दिनेश गोखरू की उपस्थिति रही। रात्रि में मधुर गायक संजय भानावत विनीत भानावत, सुरेश बोरदिया, विमल बोरदिया, अशोक बाफना ने सुंदर गीतों की प्रस्तुति दी।