दान में भावना का महत्त्व: आचार्यश्री महाश्रमण
नंदनवन (मुंबई), 19 जुलाई, 2023
तीर्थंकर समवसरण में तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी ने आगम वाणी का रसास्वादन करवाते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के आठवें शतक में कहा गया है कि राजगृह नगर में गुणशीलक नामक चैत्य के आसपास अन्य धर्मी लोग रहते थे। भगवान महावीर का वहाँ चातुर्मास होता था और अनेक स्थविर साधु भी उनके साथ विचरण करते थे। एक बार अन्य तीर्थी साधु स्थविरों के पास आकर बोले कि आप लोग असंयमी हैं। साधुओं ने पूछा कि किस कारण से आप यह कह रहे हैं? वे लोग बोले आप अदत्त को लेने वाले हो। स्थविर बोलेµहम अदत्त कब लेते हैं, कब खाते हैं। अन्य धर्मी बोले कि गृहस्थ आपको कोई दान दे रहा है, पर जब तक वह वस्तु आपके पात्र में गिरी नहीं। तब तक वो आपकी नहीं है। बीच में किसी ने उसे चुरा लिया तो वह अदत्त हो जाती है। इसलिए आप अदत्त ग्रहण करते हो।
स्थविर बोलेµहमारा सिद्धांत अलग है। हम अदत्त नहीं दत्त को ग्रहण करने वाले हैं। वे लोग बोले वो दत्त कैसे हुई? स्थविर बोलेµगृहस्थ ने देना शुरू कर छोड़ दिया, हम उसे दत्त ही मानते हैं। बीच में कोई छीन ले तो उसने साधु की चीज की चोरी की है। गृहस्थ की वह चीज नहीं रही। उसने तो दान देने के लिए उसे उठाया था। अतः उसकी वह क्रिया तो दत्त ही गई। अदत्त तो आप लोग लेने वाले हो। उस समय कितनी सूक्ष्मता से ध्यान देते थे। वह चीज दतादत्त है अपेक्षा से।
यहाँ भावना का महत्त्व है। दान देने वाले ने देने की भावना से छोड़ा है। साधु भावना से ले रहा है, वह निर्दोष है, अदत्त नहीं है। इस तरह उस समय अन्य तीर्थी अनेक चर्चाएँ करते थे। चर्चा में आग्रह न हो तो निष्पत्ति निकल सकती है। कई वर्षों पहले जैन शासन के अनेक संप्रदायों में भी चर्चाएँ होती थीं। चर्चा में राग-द्वेष न हो। ज्ञान वृद्धि का लक्ष्य हो तो कुछ नया जाना जा सकता है।
अणुविभा के तत्त्वावधान में जीवन विज्ञान चेतना संगोष्ठी का आयोजन परम पूज्य की सन्निधि में हुआ। परम पावन ने आशीर्वचन फरमाया कि जीवन विज्ञान उपक्रम, परम पूज्य गुरुदेव तुलसी के समय शुरू हुआ था। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का पथ-दर्शन भी मिला है। वर्तमान में जीवन विज्ञान का स्थान बदल गया है, पर तत्त्व वह ही है। तेरापंथ धर्मसंघ से जुड़े हुए संस्थान हैं, वहाँ पर इस पर चिंतन-मंथन हो सकता है। जैनिज्म पर भी वहाँ बात आए।
पर्युषण के समय स्कूल में भगवान महावीर के बारे में बताया जाए। धर्म की जानकारी दी जा सकती है। जैन दर्शन पढ़ने से जानकारी मिल सकती है। महावीर जयंती पर भी जानकारी दी जा सकती है। तेरापंथ के दर्शन की भी जानकारी दी जाए। तेरापंथ स्थापना दिवस, भिक्षु चरमोत्सव पर जानकारी दी जा सकती है। जीवन विज्ञान से विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार आएँ। चाहिए क्या व जरूरी क्या? उसे समझाएँ। आज जो चिंतन-मंथन हो सके अच्छी बात है। प्रकृति तो व्यापक है, उसका अपना कार्य हो सकता है।
जीवन विज्ञान के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि मनन कुमार जी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। अणुविभा के अध्यक्ष अविनाश नाहर, सरदारशहर के राजेंद्र विद्यालय के पृथ्वी सिंह बीदावत ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। आ0म0च0 व्यवस्था समिति के अध्यक्ष मदनलाल तातेड़ ने 2024 के वासी मर्यादा महोत्सव के स्वागताध्यक्ष के रूप में सरदारशहर निवासी चांदरतन दुगड़ के नाम की घोषणा की। पूज्यप्रवर ने उन्हें मंगलपाठ सुनाया। 21 रंगी तपस्या के तपस्वियों को प्रत्याख्यान करवाए। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने निर्जरा के 12 भेदों को विस्तार से समझाया।