झूठ-कपट से बचने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

झूठ-कपट से बचने का करें प्रयास : आचार्यश्री महाश्रमण

नन्दनवन-मुम्बई 30 जुलाई 2023
युवामनीषी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने निर्ग्रन्थ वाणी का रसास्वादन करवाते हुए फरमाया कि भगवती सूत्र के आठवें शतक में कहा गया है- आयुष्य कर्म के संदर्भ में इसमें प्रकरण चल रहा है। नरक आयुष्य बंध के कारण पहले बताये गये हैं। तिर्यन्च गति आयुष्य बंध के मुख्य कारण माया, गूढ़ माया, असत्य वचन, झूठ-कपट को बताया गया है। झूठ और कपट का गहरा जोड़ा है। साधु के तो तीन करण, तीन योग से झूठा बोलने का त्याग होता है। गृहस्थ के झूठ-कपट का काम पड़ सकता है पर निष्ठा व मजबूत मनोबल है, तो वह काफी झूठ से बच भी सकता है। न्याय प्राप्ति के लिए झूठ का सहारा न लें। किसी पर झूठा आरोप लगाना पाप है। असत्य बोलने के पीछे अनेक कारण हो सकते हैं पर यथासंभव झूठ से बचने का प्रयास रहना चाहिये। व्रती श्रावक को एक सीमा तक झूठ का परिवर्जन कराया जाता है। गुस्से, लोभ, भय, हंसी, मजाक से व्यक्ति झूठ बोल सकता है। व्यवसाय में तोल-माप में गड़बड़ी न करें। अनैकिता न करें। दो शब्द है- व्रत और वित्त। व्रत यानि चरित्र-ईमानदारी की सुरक्षा करें। वित्त-धन तो आता-जाता रहता है। चरित्र से हारने वाला पाप का बंध कर लेता है।
गृहस्थों के व्यापार, लेनेदेन में शुद्धता रहे। धार्मिक संस्थाओं में तो विशेष नैतिकता का प्रभाव रहना चाहिये। नियम का अतिक्रमण न हो, ताकि पाप कर्म के बन्ध व तिर्यन्च गति के बंध से बच सकंे। यह शास्त्र हमें सिद्धान्त देने वाले होते हैं। आर्श वाणी से हमें आत्मिक लाभ हो सकते हैं। कदम-कदम बढ़ेंगे तो आगे पहुंच सकेंगे। आर्श वाणी सुनकर जीवन में उतारने का प्रयास करें। प्रवचन सुनने से पाप कर्म से उतने समय तक बचेंगे। ध्यान से सुनेंगे तो ज्ञान प्राप्त होगा और समस्या का समाधान भी मिल सकता है। सुनते-सुनते आदमी त्याग के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। हेय को छोड़ेगा, उपादेय को ग्रहण करेगा।
‘मैं व्रती हूं’ कार्यशाला का आयोजन
‘मैं व्रती हूं’ कार्यशाला के संदर्भ में पूज्यवर ने फरमाया कि बारह व्रती का मतलब है कि धर्म जीवन में आया है। व्रतों को सुनो, जानो और स्वीकार करो। एक आचरणात्मक धर्म है, एक साधनामय- उपासनामय धर्म है। अंतिम मनोरथ है -संलेखना। आध्यात्मिक आराधना करते-करते अनशन में प्राण छूटे। व्रती श्रावक होना जीवन में एक उपलब्धि है। यह आध्यात्मिक पूंजी अर्जन करें, जो आगे भी काम आ सकती है। इस पूंजी को वृृद्धिंगत करने का प्रयास करें।
पूज्यवर ने साध्वी विशालयशाजी एवं साध्वी विशालप्रभाजी को आज 28 की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। पूज्यवर ने मासखमण की तपस्या के क्रम में महेन्द भरसारिया को 31 एवं नेहा रागी, गणपतलाल धाकड़, सुशीला नाहटा, मनोहरलाल चावड़िया, डॉ दीपक कावड़िया, देवेन्द्र मेहता, चेतना बावरिया, विनिता बरड़िया, कनिष्का खटेड़, दिनेश श्रीश्रीमाल, विशाल सेमलानी को 30, रेखा धोका, पारस मेहता, पुष्पा कोठारी, बसंती चोरड़िया, राजेन्द्र दूगड़, मनोज ओस्तवाल, केशर कोठारी को 29 एवं सपना कोठारी, अरविन्द कोठारी को 28 की तपस्या के प्रत्याख्यान करवाये। अन्य तपस्याओं के क्रम में लता भरसारिया, अरिहंत भरसारिया, राजुल सांखला, विमला खीमेसरा, रेखा मेहता को उनके तप के अनुसार प्रत्याख्यान करवाये।
साध्वीप्रमुखाश्रीजी ने फरमाया कि जैन धर्म में दो प्रकार के धर्म आगार धर्म और अणगार धर्म बताये गये हैं। दोनों का लक्ष्य एक ही है, पर गति में अन्तर है। श्रावक आनन्द बहुत सौभाग्यशाली था, जिसने भगवान महावीर से बारहव्रत स्वीकार किये थे। हमारे पूज्य आचार्य भी प्रयास कर बारहव्रती श्रावक बनाते हैं। प्रवृत्ति और अविरति से बंधन होता है। व्रत धर्म है। श्रमणोपासक बनने से जीवन में एक सीमा आ जाती है। श्रमणोपासक त्याग की तरफ आगे बढ़ रहे हैं।
साध्वीवर्याजी ने फरमाया कि व्यक्ति आसक्ति रूपी गाय से बंधा है। इसलिए वह परिग्रह से बंधा है। पदार्थ के प्रति जुड़ने वाली इच्छा, संग्रह और मूर्छा है, वह परिग्रह है। हम इनका सीमाकरण करें, इन पर नियंत्रण करें। अपरिग्रह के लिए अर्जन में नैतिकता हो, साधन शुद्धि हो। महारम्भ का काम न करें।
मुंबई की तेयुप शाखाओं का शपथ ग्रहण समारोह ‘तिलकोत्सव’
पूज्यवर की सन्निधि में एवं अभातेयुप के निर्देशन में समस्त मुंबई की तेयुप शाखाओं का शपथ ग्रहण समारोह ‘तिलकोत्सव’ आयोजित हुआ। मुनि दिनेशकुमारजी, अभातेयुप के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमारजी ने युवाओं को पावन प्रेरणा प्रदान की। अभातेयुप के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने वक्तव्य के साथ नवमनोनीत अध्यक्षगण एवं उनकी टीम को शपथ ग्रहण करवायी एवं उनके सफल कार्यकाल की मंगल कामना की। महामंत्री पवन मांडोत ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। उपस्थित युवकों को प्रेरणा प्रदान कराते हुए पूज्यवर ने फरमाया कि युवक सामायिक, चारित्रात्माओं की रास्ते की सेवा आदि करने का प्रयास करें। नशा मुक्त रहें। परिवार में अच्छे संस्कार आये। चारित्रात्माओं के सान्निध्य से धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ मिल सकता है। तप साधना भी चले। किशोरों का भी ध्यान रखें। किशोरों में भी जागरुकता रहे। शपथ अपने आप को संकल्पित करने का उपक्रम है। अभातेयुप, तेयुप, किशोर धर्मसंघ की अच्छी पौध है। समाज की गरिमा को बढ़ाने वाले हैं। खूब अच्छा विकास हो, मंगलकामना।